पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३०४

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१९४ यार्थप्रकाश: !! विद्या से अत्यन्त रहित हुए तब उनके सामने जो २ गप मारी तो २ विचारों न सब मान ली तव इन नाममात्र त्राह्मणों की बनी सबको अपने वचनजाल म वापुर बभूत क्राय आर कदर लग iके:-- ह्मवाक्य जनादनः ॥ पाडtता ॥ अथो जो कुछ ब्राह्मणों के मुख में से वचन निकलता है वह जानो साक्षात् भगवान के मुख से निकला जब क्षत्रियादि वर्ण आय के अंधे और गाठ के पूरे अथत भीतर विद्या की आख फूटी हुई और जिनके पास धन पुष्कल है ऐसे २ चेले मिले फिर इन व्यर्थ नह्मण नामबालों को विषयानन्द का उपबन मिलगया यह भी उन लोगों ने प्रसिद्ध किया कि जो कुछ पृथ्वी में उत्तम पदार्थ हैं वे सब ब्रा- ह्माणों के लिये हैं अत् जो गुण कमे स्वभाव स त्राह्मणादेि एव्यवस्था थे उसका नष्ट कर जन्म पर रखी और मृतक कफ्येन्स का भी दान यजमानो से लेने लगे अपनी इच्छा हुई वैसा करते चले यहांतक किया कि ‘हम भूदेव है” हमारी सेवा के बिना देवलो किसी को नहीं मिल सकता ' इनसे पूछना चाहिये कि तुम किस लोक में पधारोगे' तुम्हारे काम तो बोर नरक भोगने के हैं कृमि, कीट, पतनादि बनोगे तब तो वड क्रोधित होकर कहते हैं- म “शाप' देंगे तो तुम्हारा नाश हो जायगा क्योंकि लिसा है नहाद्रोही विनश्यति'" के जो त्राह्मणों से द्रोह करता है उस r । जाता है। दा, यह वात तो सच है कि जो पूर्ण वेद और परमात्मा की Iननेवाले, धमत्मा, सब जगत् के उपका क पुरुषों से कोई द्वेष करेगा वह } अजय नष्ट हो। है परन्तु जो त्राह्मण नहीं उनका न त्राह्मण नाम और न उत- है 4 में सवा करों यांग्य ! ( रन ) तो हम कौन है ? ( उत्तर ) तुम पांप x I ( रन ) पोप किसको कहते हैं ? (उत्तर ) इसकी सूचना रू मन भाषा में तो बड़ 3 और पिता का नाम पोप है परन्तु अब छल कपट से दूसरे को ठगकर अपना प्रयोजन सावनेवाले को पोप कहते हैं। ( प्रश्न ) हम तो ब्राह्माण और erधु हैं कि सार तिr tर ए और ममता ब्राह्मणी तथा हम आमुक साधु के चेले हैं। ( उत्तर ) यद स्थ हैं परन्तु न भट्ट' मां बाप त्रावण त्रह्माण होने से और किसी साधु के शेय ) ५र या साधु नहीं हो सकते किन्तु प्रह्मण श्रौर साधु अपने उत्तम गुण cमें स्प से होते हैं जो कि परोपकारी हो सुना है कि जैसे स्म के ‘*' प' अपने ?

थे कि & तुम अपने प५ ६गर स[मने कहोगे तो हर क्षमा कर देंगे चिंता