पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३१

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“सर्वशक्तिमान्” है । (णीय प्रापणे) इस धातु से “न्याय” शब्द सिद्ध होता है। “प्रमाणैरर्थपरीक्षणं न्यायः” यह वचन न्यायसूत्रों पर वात्स्यायनमुनिकृत भाष्य का है “पक्षपातराहित्याचरणं न्यायः” जो प्रत्यक्षादि प्रमाण की परीक्षा से सत्य २ सिद्ध हो तथा पक्षपात रहित धर्मरूप आचरण है वह न्याय कहाता है “न्यायं कर्तु शीलमस्य स न्यायकारीश्वरः” जिसका न्याय अर्थात् पक्षपातहत धर्म करने ही का स्वभाव है इससे उस ईश्वर का नाम “न्यायकारी” है । (दय दानगतिरक्षणहिसादानेषु ) इस धातु से “दया” शब्द सिद्ध होता है “दयते ददाति जानाति गच्छति रक्षति हिनस्ति यया सा दया बह्वी दया विद्यते यस्य स दयालुः परमेश्वरः” जो अभय का दाता सत्याऽसत्य सर्व विद्याओं को जानने, सव सज्जनों की रक्षा करने और दुष्टों को यथायोग्य दण्ड देनेवाला है इससे परमात्मा का नाम “दयालु” है। “द्वयोर्भावो द्विता द्वाभ्यामित द्वीत वा सैव तदेव वा द्वैतम्, न विद्यते द्वैतं द्वितीयेश्वरभावो यस्मिंस्तद्वैतम्” अर्थात् “सजातीयविजातीयस्वगतभेदशून्यं ब्रह्म” दो का होना वा दोनों से युक्त होना वह द्विता वा द्वीत अथवा द्वैत इससे जो रहित है, सजातीय जैसे मनुष्य का सजातीय दूसरा मनुष्य होता है, विजातीय जैसे मनुष्य से भिन्न जातिवाला वृश्च पाषाणादि, स्वगत अर्थात् शरीर में जैसे आंख, नाक, कान आदि अवयवों का भेद है वैसे दूसरे स्वजातीय ईश्वर विजातीय ईश्वर वा अपने आत्मामें तत्त्वान्तर वस्तुओं मे हित एक परमेश्वर हैं इससे परमात्मा का नाम “अद्वैत” है । “गण्यन्ते ये ते गुणा वा यैर्गणयन्ति ते गुणाः, यो गुणेभ्या निर्गतः स निर्गुण ईश्वरः” जितने सत्व, रज, तमः, रूप, रस, स्पर्श, गन्धादि जड़ के गुण, अविद्या, अल्पज्ञता, राग, द्वैप और अविद्यादि क्लेश जीव के गुण हैं उनसे पृथक् है, इसमें “अशब्दमस्पर्शमरूपमव्ययम्” इत्यादि उपनिषदों का प्रमाण है। जो शब्द, स्पर्श, रूपादि गुणरहित है इससे परमात्मा का नाम “निर्गुण” है। “यो गुणैः सह वर्त्तते स सगुण” जो सब का ज्ञान सर्वसुख पवित्रता अनन्त बलादि गुणों से युक्त हैं इसलिये परमेश्वर का नाम “सगुण” है जैसे पृथिवी गन्धादि गुणों से “सगुण” और इच्छादि गुणों से रहित होने से “निर्गुण” है वैसे जगत् और जीव के गुणों से पृथक होने से परमेश्वर “निर्गुण” और सर्वज्ञादि गुणों से सहित होने से “सगुण” है। अर्थात् ऐसा कोई भी पदार्थ नहीं है जो सगुणता और निर्गुणता से पृथक् हो। जैसे चेतन के गुणों से पृथक् होने से जड़ पदार्थ निर्गुण और अपने गुण से सहित होने से सगुण । वैसे ही जड़ के गुणों से पृथक् होने से जीव निर्गुण और इच्छादि अपने गुणों से