पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३१६

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| सत्यार्थप्रकाश ।। छान के बिना अध्यस्त प्रतीत नहीं होता जैसे गंजू न हो तो साई का भी भान नहीं हो सकता जैसे रज्ज़ में सर्प तीन काल में नह: है परन्तु अन्धकार और-कुछ प्रकाश के मेल में अकस्मात् रज्जू को देखने से सर्प का भ्रम होकर भय से कपता है जब उसको दीप आदि से देख लेता है उसी समय भ्रम और भय निवृत्त होजाता है वैसे ब्रह्म में जो जगत् की मिथ्या प्रतीति हुई है वह ब्रह्म के साक्षात्कार होने में जगत् की निवृत्ति और ब्रह्म की प्रतीति होजाती है जैसा कि सर्प की निवृत्ति और रज्जू की प्रतीति होती है । ( सिद्धान्ती ) ब्रह्म में जगत् का भान किपको हुआ ? (नवीन) जीव को ( सिद्धान्ती ) जीव कहां से हुआ। ( नवीन ) अज्ञान में । ( सिद्धान्ती ) अज्ञान कहां से हुआ और कहां रहता है (नवीन) अज्ञान अनादि और ब्रह्म में रहता है (सिद्धान्ती ) ब्रह्म में ब्रह्म का अज्ञान हुआ वा किसी अन्य का और वह अज्ञान किसको हुआ ? ( नवीन ) चिदाभास को । ( सिद्धान्ती ) चिदाभास का स्वरूप क्या है ? (नवीन ) ब्रह्म, ब्रह्म को ब्रह्म का अज्ञान अर्थात् अपने स्वरूप को आप ही भूल जाता है । (सिद्धान्त) उसके भूलने में निमित्त क्या है ? (नवीन) अविद्या । ( सिद्धान्ती ) अविद्या सर्वव्यापी सर्वज्ञ का गुण है वा अल्पज्ञ का ? ( नवीन ) अल्पज्ञ का । ( मिद्धान्ती ) तो तुम्हारे मत में विना एक अनन्त सर्वज्ञ चेतन के दूसरा कोई चेतन है। वा नहीं ? और अल्पज्ञ कहा से आया ? हां, जो अल्पज्ञ चतन ब्रह्म से भिन्न मानो तो ठीक है जब एक ठिकाने ब्रह्म को अपने स्वरूप का अज्ञान हो तो सर्वत्र अज्ञान फैल जाय जैसे शरीर में फोडे की पीड़ा सब शरीर के अवयवों को निकम्मे कर देती है इमी प्रकार ब्रह्म भी एक देश में अज्ञानी और क्लेशयुक्त हो तो सत्र ब्रह्म भी अज्ञानी और पीड़ा के अनुभवयुक्त होजाय । ( नवीन) यह सब उपाधि का धर्म है ब्रह्म का नहीं । सिद्धान्ती) उपाधि जड है वा चेतन और सत्य है वा असत्य ? ( नवीन ) अनिर्वचनीय है अर्थात् जिसको जड़ वा चेतन सत्य वा असत्य नहीं कह सकते । ( सिद्धान्त ) यह तुम्हारा कहना ‘वदतो व्याघात के तुल्य है क्योंकि कहते हो अविद्या है जिसको जड़, चेतन, सत्, असत् नहीं कह सकते यह ऐसी बात है कि जैसे सोने में पीतल मिला हो उसको सराफ के पास परीक्षा करावे कि यह सोना है। वा पीतल ? ती यही कहोगे कि इसका हम न सोना न पीतल कह सकते हैं किन्तु इसमें दोनों धातु मिली हैं। (नवीन) देखो जैसे घटाकाश, मठकाश, मेघाकाश और महदाकाशोपावि अर्थान् घडा घर और मेघ के होने से भिन्न २ प्रतीत होते है वास्तव !