पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

सत्यार्थप्रकाश ।। दारण्यक के अन्तर्यामी ब्राह्मण में स्पष्ट लिखा है और ब्रह्म का अभास भी नहीं पड़ सकता क्योंकि विना आकार के आभास का होना असम्भव है जो अन्त:करणेपाधि से ब्रह्म को जीव मानने हो सो तुम्हारी बात बालक के समान है अन्त:करण चलायमान खण्ड २ और ब्रह्म अचल और अखण्ड है यदि तुम ब्रह्म और जीव को पृथक् २ न मानोगे तो इम का उत्तर दीजिये कि जहां २ अन्तकरण चला जायगा वहा २ ॐ ब्रह्म का अज्ञानी और जि! २३ देश को छोड़ेगा वहा २ के ब्रह्म को ज्ञानी कर देवेगा वा नहीं है जैसे छाता प्रकाश के बीच में जहा २ जाता है वहां २ प्रकाश को अवरणयुक्त और जहा से हटता है बहा २ के प्रकाश को आवरण रहित कर देता है वैसे ही अन्त करण ब्रह्म को क्षण २ ॥ ज्ञानी अज्ञानी बद्ध और मुक्त करता जायगा अखड ब्रह्म के एकदेश में आवरण का प्रभाव सवदेश में होने से सब ब्रह्म अज्ञानी होजायगा क्योकि वह चेतन है और मथुरा में जिस अन्त करणस्थ ब्रह्म ने जो वस्तु देखी इसका स्मरण उस अन्त कणस्थ म काशी में नहीं हो सकता क्योंकि अन्यदृष्टमन्य न स्मरतीति न्यायात् और के देखे का स्मरण और को नहीं होता जिस चिदाभास ने मथुरा में देखा वह चिदाभास काशी में , नही रहता किन्तु जो मथुरास्थ अन्तकरण का प्रकाशक है वह काशस्थ ब्रह्म नहीं होता जे ब्रह्म ही जीव है किन्तु पृथक् नहीं तो जीव को सर्वज्ञ होने चाहिये यदि ब्रह्म का प्रतिविम्ब पृथक् है तो प्रत्यभिज्ञा अर्थात् पूर्व दृष्ट श्रुत का ज्ञान किसी को नहीं हो। सकेगा । जो कहा कि ब्रह्म एक है इसलिये स्मरण होता है तो एक ठिकाने अज्ञान वा दु ख होने मे सप ब्रह्म को अज्ञान वा दु ख हो जाना चाहिये और ऐमे २ दृष्टान्त । से नित्य, शुद्ध, बुद्ध, मुक्तस्वभाव ब्रह्म को तुमने अशुद्ध, अज्ञानी और बद्ध आदि दोषयुक्त कर दिया है और अखड को खण्ड २ कर दिया है। | ( नवीन ) निराकार का भी आभास होता है जैसा कि दर्पण वा जलादि में - काश का आभास पड़ता वह नीला वा किसी अन्य प्रकार गम्भीर गहरा दीखता है। वैसा ब्रह्म का भी सब अन्त करणों में आभास पड़ता है । (सिद्धान्ती ) जब आकाश में रूप ही नहीं हैं तो उसको आख से कोई भी नहीं देख सकता जो पदार्थ दीखता ही नहीं वह दर्पण और जलादि में कैसे दीखगा गहरा वा छिद्रा साकार वस्तु दोपता है निराकार नहीं । ( नवीन ) तो फिर जंयह ऊपर नीला सा दीखता है वहीं । आदर्शवाल में भान होता है वह क्या पदार्थ हैं ? ( सिद्धान्त ) वह पृथिवी से । | उइकर जले पृथिवी और अग्नि के अन२णु हैं जहा से बप होती है वह जल न ।