पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३४७

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एकादशसमुल्लासः ॥ तब इतना बड़ा मन्दिर है कि जिसमें दिन में भी अन्धेरा रहता है और दीपक जलाना पड़ता है उन मूर्तियों के आगे खैच कर लगाने के पड़दे दोनों ओर रहते हैं पण्डे पूजारी भीतर खड़े रहते हैं जब एक ओर वाले ने पर्दे को खीचा झट मूर्ति आड़ में जाती है तब सब पण्डे और पूजारी पुकारते है तुम भेट धरो तुम्हारे पाप छूट जायेंगे तब दर्शन होगा शीघ्र करो वे विचारे भोले मनुष्य धूर्तों के हाथ लूटे जाते हैं और झट पर्दा दूसरा बैंच लेते हैं तभी दर्शन होता है तब जय शब्द बोल के प्रसन्न होकर धक्के खाके तिरस्कृत हो चले आते है। इन्द्रदमन वही है जिसके कुल के लोग अबतक कलकत्ते में हैं वह धनाढ्य राजा और देवी का उपासक था उसने लाखो रुपये लगाकर मन्दिर बनवाया था, इसलिये कि अयातरी देश के भोजन का बखेडा इस रीति से छुड़ावै परन्तु वे मूर्ख कब छोडते हैं देन माना तो उन्हीं कारीगरों को माना कि जिन शिल्पियों ने मन्दिर बनाया राजा पण्डा और बढई उस समय नहीं मरते परन्तु वे तीनों वहां प्रधान रहते हैं छोटो को दु ख देते होंगे उन्होने सम्मत करके उस समय अर्थात् कलेवर बदलने के समय में तनों उपस्थित रहते हैं मूर्ति का हृदय पोला रक्खा है उसमें सोने के सम्पुट में एक शालगराम रखते हैं कि जिसको प्रतिदिन धो के चरणामृत बनाते हैं उस पर रात्री की शयन आर्ती में उन लोगों ने विष का तेजाब लपेट दिया होगा उसको धो के उन्हीं तीनों को पिलाया होगा कि जिससे वे कभी मर गये होंगे मरे तो इस प्रकार और भागनभट्ट ने प्रसिद्ध किया होगा कि जगन्नाथजी अपने शरीर बदलने के समय तीनों भक्तों को भी साथ ले गये ऐसी झूठी बातें पराये धन ठगने के लिये बहुतसी हुअा करती हैं। (प्रश्न ) जो रामेश्वर में गगोत्तरी के जल चढाने समय लिङ्ग बढजाता है क्या यह भी बात झूठी है ? ( उत्तर ) झूठी, क्योंकि उस मन्दिर में भी दिन में अन्वेरा रहता है दीपक रात दिन जल करते हैं जब जल की धारा छोडते हैं तय उस जल में बिजुली के समान दीपक का प्रतिविम्ब चमकता है और कुछ भी नहीं न पाषाण घटे न बढे जितना का उतना रहता है ऐसी लीला करके विचारे निर्बुद्वियों को ठगते है (प्रश्न) रामेश्वर को रामचन्द्र ने स्थापन किया है जो मूर्तिपूजा वदविरुद्ध होती तो रामचन्द्र मूर्तिस्थापन क्यों करते और वाल्मीकि जी रामायण में क्यों लिखते ? (उत्तर) रागचन्द्र के समय में उस लिङ्ग वा मन्दिर का नाम चिन्ह भी न था किन्तु यह