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“ओमित्येतदक्षरमुद्गीथमुपासीत” इदं छान्दोग्योपनिषद्वचनम्।

“ओमित्येतदक्षरमिद सर्वंᳬंतस्योपव्याख्यानम्” इदं च माण्डूक्योपनिषद्वचनम् ॥


ये सब उन २ शास्त्रो के आरम्भ के वचन हैं ऐसे ही अन्य ऋषि मुनियों के ग्रन्थों में “ओ३म्” और “अथ” शब्द लिखे हैं वैसे ही (अग्नि, इट्, अग्नि, ये त्रिषप्ताः परियन्ति) ये चारों वेदों के आदि में लिखे हैं “श्रीगणेशाय नमः” इत्यादि शब्द कहीं नहीं और जो वैदिक लोग वेद के आरम्भ में “हरि ओ३म” इत्यादि लिखते और पढ़ते हैं यह पौराणिक और तांत्रिक लोगों की मिथ्या कल्पना से सीखे हैं वेदादि शास्त्रों “हरि” शब्द आदि में कहीं नहीं इसलिये “ओ३म्” वा “अथ” शब्द ही ग्रन्थ के आदि में लिखना चाहिये । यह किञ्चित्मात्र ईश्वर के विषय में लिखा इसके आगे शिक्षा के विषय में लिखा जायगा ॥


इति श्रीमद्दयानन्द सरस्वती स्वामिकृते सत्यार्थप्रकाशे
सुभाषाविभूषितईश्वरनामविषये प्रथमः
समुल्लासः सम्पूर्णः ॥