पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३५४

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| 11 ** ३४४ | सत्यार्थप्रकाशः ।। प्रातःकाले शिवं दृष्ट्वा निशिपापं विनश्यति । आजन्मकृतं मध्याह्न साया सप्तजन्मनाम् ॥ ३ ॥ इत्यादि लेक पोपपुराण के हैं जो सैकड़ों सहस्रो कोश दूर मे भी गङ्गा २ कहे तो उसके पाप नष्ट होकर वह विष्णुलोक अर्थात् वैकुण्ठ को जाता है ॥ १॥ हरि" इन दो अक्षरों का नामोच्चारण सव पाप को हर लेता है वैसे ही राम, कृष्ण, शिव, भगवती आदि नामों का माहात्म्य है॥२॥ और जो मनुष्य प्रात.काल में शिव, अर्थात् लिङ्ग वा उसकी मृत्ति का दर्शन करे तो रात्रि में किया हुआ मध्याह्न में दर्शन से जन्म भर का मायङ्काल में दर्शन करने से सात जन्मों का पाप छूट जाता हैं यह दर्शन का माहात्म्य है ।। ३ ।। क्या झूठा हो जायगा ? (उत्तर ) मिथ्या होने में क्या शङ्का ? क्योंकि गङ्गा : वा हरे, राम, कृष्ण,नारायण, शिव और भगवती नामस्मरण से पाप कभी नहीं छूटता जो छूटे तो दु खी कोई न रहै और पाप करने से कोई भी न डरे जैसे आज कल पोपलीला में पाप बढ़ कर हो रहे हैं मूढ का विश्वास है कि हम पाप कर नामस्मरण वा तीर्थयात्रा करेंगे तो पाप की निवृत्ति हो जायगी । इसी विश्वास पर पाप करके इस लोक और परलोक का नाश करते हैं। पर किया हुआ पाप भोगना ही पड़ता है। प्रश्न) तो कोई तीर्थ नामस्मरण सत्य है वा नी ? (उत्तर) है.-वेदादि सत्य शास्त्रों का पढन पढाना, धार्मिक विद्वानों का संग, परोपकार, धर्मानुष्ठान, योगाभ्यास, निवेर, निष्कपट, सत्यभाषण, सत्य का मानना, सत्य करना, ब्रह्मचर्यसेवन, प्राचार्य अतिथि माता पिता की सेवा, परमेश्वर की स्तुति प्रार्थना उपासना, शान्ति, जितेन्द्रयता, सुशीलता, धर्मयुक्तपुरुषार्थ, ज्ञान विज्ञान आदि शुभगुण कर्म दुखों से तारनेवाले हाने से तीर्थ हैं। और जो जल स्थलमय हैं वे तीर्थ कभी नहीं हो सकते क्योंकि “जना यैस्तरन्ति तानि तीर्थानि मनुष्य जिन करके दुखों से तर उनका नाम तीर्थ है जल थल तरानेवाले नहीं किन्तु डुबाकर मारनेवाले हैं प्रत्युत नौका अदि का नाम तीर्थ हो सकता है क्योंकि उनसे भी ममुद्र आदि को तरते हैं । समानतीर्थे वासी । अ० ४ } पा० ४ । १०८ ॥ नमस्तीयाय च || यजुः ।। अ० १६ ॥ जा ब्रह्मचारी एक प्राचार्य और एक शास्त्र को साथ २ पढ़ते हो वे मव सतीध्यं । अर्थात् मानत:यमयी होते हैं जो वेदादि श न्न और सत्यभापणादि धर्म लक्षणों में } +