पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३५५

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एकादशसमुल्लास. ।। साधु हो उसको अन्नादि पदार्थ देना और उनसे विद्या लेनी इत्यादि तीर्थ कहाते हैं नामस्मरण इसको कहते हैं कि -- यस्थ नाम महद्यशः ॥ यजुः । अ० ३२ । मं० ३ ॥ परमेश्वर का नाम बडे यश अर्थात् धर्मयुक्त कामों को करना है जैसे ब्रह्म, परमेश्वर, ईश्वर, न्यायकारी, दयालु, सर्वशक्तिमान् आदि नाम परमेश्वर के गुण कर्म स्वभाव से हैं जैसे ब्रह्म सत्र में बड़ा परमेश्वर ईश्वरों का ईश्वर, ईश्वर सामर्थ्ययुक्त, न्यायकारी कभी अन्याय नहीं करता, दयालु सब पर कृपादृष्टि रखता, सर्वशक्तिमान अपने सामथ्र्य ही से सब जगत् की उत्पत्ति स्थिति प्रलय करता सदाय किसी को नहीं लेता, ब्रह्म विविध जगत् के पदार्थों को बनानेहारा, विष्णु सब में व्यापक होकर रक्षा करता, महादेव सब देवों का देव, रुद्र प्रलय करनेहारा अादि नाम के अर्थों को अपने में धारण करे अर्थात् बड़े कामों से बड़ा हो, समर्थों में समर्थ हो, सामथ्र्यों को बढ़ाता जाय, अधर्म कभी न करे, सब पर दया रक्खे, सब प्रकार साधन को समर्थ करे, शिल्पविद्या से नाना प्रकार के पदार्थों को बनावे, सबै संसार में अपने आत्मा के तुल्य सुख दुःख समझे सव की रक्षा करे, विद्वानों में विद्वान् होवे, दुष्ट कर्म और दुष्ट कर्म करनेवालों को प्रयत्न से दण्ड और सज्जन की रक्षा करे, इस प्रकार परमेश्वर के नाम का अर्थ जानकर परमेश्वर के गुण कर्म स्वभाव के अनुकूल अपने गुण कर्म स्वभाव को करते जाना ही परमेश्वर का नामस्मरण है । ( प्रश्न :--- , गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुरेव परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ इत्यादि गुरुमाहात्म्य तो सच्चा है ? गुरु के पग धोके पीना जैसी प्रज्ञा करे वैसा करना गुरु लोभी हो तो बावन के समान, क्रोधी हो तो नरसिंह के सदृश, मोही हो तो रामके तुल्य और काम हो तो कृण के समान गुरु को जानना, चाहे गुरु जी कैसा ही पाप करे तो भी अश्रद्धा न करनी,सन्न वा गुरु के दर्शन का जाने में पग २ में अश्वमेध का फल होता है यह बात ठीक है या नहीं ? (उत्तर ) ठीक नही, हार, विष्णु, महेश्वर और परब्रह्म परमेश्वर के नाम हैं उसके तुल्य गह कभी नहीं हो मकता यह गुरुमाहात्म्य गुरुगीता भी एक वडी पोपलाला है गुम तो माता, पिता, आचार्य और अतथि होते हैं उनकी सेवा करने, उनमें वि शिक्षा लेन देनी शिस्य ।

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