पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३५६

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सत्यार्थप्रकाश: ॥ और गुरु का काम है परन्तु जो गुरु लोभी, क्रोधी, मोही और कामी हो तो उसको 'सर्वथा छोड़ देना शिक्षा करनी सहज शिक्षा से न माने तो अर्घ्य पाद्य अर्थात् ताड़ना दण्ड प्राणहरण तक भी करने में कुछ दोष नही जो विद्यादि सद्गुणों में गुरुत्व नहीं है झूठ मूठ कण्ठी तिलक वेदविरुद्ध मन्त्रोपदेश करने वाले हैं वे गुरु ही नहीं किन्तु गड़रिये जैसे है, जैसे गडरिये अपनी भेड़ बकारियों से दूध आदि से प्रयोजन सिद्ध करते हैं वैसे ही शिष्यों के चेल चेलियों के धन हर के अपना प्रयोजन करते हैं वे.दो०-लोभी गुरू लालची चेला, दोनों खेलें दाव ।। भवसागर में डूबते, बैठ पथर की नाव ॥ गुरु समझे कि चेले चेली कुछ न कुछ देवेहींगे और चेला समझे कि चलो गुरु झूठे सौगंद खाने पाप छुड़ाने आदि लालच से दोनों कपटमुनि भवसागर के दुःख में डूबते है जैसे पत्थर की नौका में बैठनेवाले समुद्र में डूब मरते हैं ऐसे गुरु और चेले के मुख पर धूल राख पड़े उसके पास कोई भी खडा न ग्है जो रहै वह दु खसागर मे पडेगा जैसी लीला पुजारी पुराणियों ने चलाई है वैसी इन गड़रिये गुरु न भी लीला मचाई है यह सब काम स्वार्थी लोगों का है जो परमार्थी लोग है वे आप दुःख पावें तो भी जगत का उपकार करना नहीं छोड़ते और गुरुमाहात्म्य तथा गुरुगीता आदि भी इन्हीं कुकर्मी गुरु लोगो ने बनाई हैं ( प्रश्न ):--- अष्टादशपुराणानां कर्ता सत्यवतीसुतः ॥ १ ॥ इतिहासपुराणाभ्यां वेदार्थमुपवृहयेत् ॥ २ ॥ महाभारते ॥ पुराणान्यखिलानि च ॥ ३ ॥ मनु० ॥ इतिहासपुराणं पंचम वेदानां वेदः ॥ ४ ॥ छान्दोग्य० । प्र० ७ खं० १ ॥ दशमऽहदि किंचित्पुराणमाचक्षीत ।। ५ ॥ पुराणविद्या वेदः ।। ६ ।। सूत्रम् ॥ अठारह पुराण के कत्ता व्यासजी ३ व्यासवचन का प्रमाण अवश्य करना viचे ।। १ ।। इतिहम, महाभारत, अठारह पुराण से वेद का अर्थ पढे पदावे क्योंकि ३५८ र पुराण वेद हो के अर्थ अनुकूल हैं ॥ २ ॥ पितृकर्म में पुराण और