पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३५९

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••••. । .......... .. . ... । एकादशसमुल्लासः ।। = -=- -= = =-- उत्पन्न कर । ब्रह्मा ने उससे कहा कि मैं तेरा पुत्र नहीं किन्तु तू मेरा पुत्र है उनमें विवाद हुआ और दिव्यसहस्र वर्षपर्यन्त दोनो जलपर लड़ते रहे । तब महादेव ने विचार किया कि जिनको मैंने मष्टि करने के लिये भेजा था वे दोनों आपस में लड़ झगड़ रहे हैं तब उन दोनों के बीच में से एक तेजोमय लिग उत्पन्न हुअा और वह शीघ्र प्रकाश में चला गया उसको देख के दोनों साश्चर्य होगये विचारा कि इस - का आदि अन्त लेना चाहिये जो आदि अन्न लेके शीघ्र आवे वह पिता और जो पीछे वा थाह लेके न आव वह पुत्र कहावे विष्णु कूर्म का स्वरूप धर के नीचे को चला और ब्रह्मा हंसका शरीर धारण कर के ऊपर को उड़ा दोनों मनोवेग से चले । दिव्य| सहस्र वष पर्यन्त दोनों चलते रहे तो भी उसका अन्त ने पाया तब नीचे से ऊपर विष्णु और ऊपर से नीचे ब्रह्मा ने विचारा कि जो वह छोड ले आया होगा तो मुझ को पुन्न बनना पड़ेगा ऐसा सोच रहा था कि उसी समय एक गाय और केतकी का वृक्ष ऊपर से उतर आया उनसे ब्रह्मा ने पूछा कि तुम कहां से आये ? उन्होंने कहा हम सहस्र वर्षों से इस लिग के आधार से चले आते है ब्रह्मा ने पूछा कि इस लिंग की थाह है वा नहीं ? उन्होंने कहा कि नहीं । ब्रह्मा ने उनसे कहा कि तुम हमारे साथ चलो और ऐसी साक्षी देओ कि मैं इस लिंग के शिरपर दूध की धारा वपती थी और वृक्ष कहे कि मैं फूल वर्षाता था, ऐसी साक्षी देयो तो मैं तुमको ठिकाने पर ले चलू उन्होने कहा कि हम झूठी साक्षी नहीं देंगे तब ब्रह्मा कुपित होकर बोला जो साक्षी नहीं देओगे तो मैं तुमको अभी भस्म कर देता हू' तब दोनो ने डर के कहा कि हम जैसी तुम कहते हो वैसी साक्षी देवेंगे। तव तीनों नीचे की ओर चले विष्णु प्रथम ही आगये थे,ब्रह्मा भी पहुचा, विष्णु से पूछा कि तू थाह ल आया वा नहीं ? तब विष्णु बोला मुझको इस की थाह नहीं मिली, ब्रह्मा ने कहा मैं ले प्रायः विष्णु ने कहा कोई साक्षी दे तब गाय और वृक्ष ने साक्षी दी हम दोनों लिंग के शिर पर थे। तव लिंग में से शव्द निकला और वृक्ष को शाप दिया कि जिससे तु झूठ बोला इसलिये तर फूल मुझ वा अन्य देवता पर जगत् में कहीं नही चढेगा अर जो कोई चढावेगा उसका सत्यानाश होगा। गाय को शाप दिया कि जिस मुख स तु झुठ बाली उसी से विग्ना पाया। करेगी तेरे मुख की पूजा कोई नहीं करेगा किन्तु पुछ को करेंगे । और ब्रह्मा को शप दिया कि तू मिथ्या याला इसलिये तेरी पूजा संसार में कहीं न होगी । और विष्णु को वर दिया तू सत्य वाला इससे तेरी पूजा सर्वत्र हो । पुनः दोनों ने लिग की स्तव की उससे प्रसन्न होकर उस लिग में से एक जटाजूट न निकल 'प्राई और कहा