पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३६०

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५ सत्यार्थप्रकाशः ।। - ~! किं तुमको मैंने सृष्टि करने के लिये भेजा था झगड़े में क्यों लग रहे ? ब्रह्मा र } विष्णु ने कहा कि हम विना सामग्री सृष्टि कहा से करें तव महादेव ने अपनी जटा में से एक भस्म का गोला निकाल कर दिया कि जाओ इसमें से सब सृष्टि बनाओ ' इत्यादि । भला कोई इन पुराणों के वनानेवालों से पूछे कि जब सृष्टि तत्व और पचम: हाभूत भी नहीं थे तो ब्रह्मा विष्णु महादेव के शरीर, जल, कमल, लिग, गाय और | केतकी का वृक्ष और भस्म का गोला क्या तुम्हारे बाबा के घर में से अगिरे । । वैसे ही भागवत में विष्णु की नाभि से कमल, कमल से ब्रह्मा और ब्रह्मा के दहिने पग के अंगूठे से स्वायभुव और बायें अंगूठे से सत्यरूपा राणी, ललाट से रुद्र और मरीचि अदि दश पुत्र, उनसे दश प्रजापति, उनकी तेरह लड़कियों का विवाह कश्यप से हुआ उनमे से दिति से दैत्य, दनु से दानव, अदिति से आदित्य, विनता से पक्षी, कदू से सर्प, सरमा से कुत्ते स्याल अादि और अन्य स्त्रियों से हाथी, घोड़े, ऊंट, गधा, भैंसा, घास, फूस और ववर अादि वृक्ष काटे सहित उत्पन्न होगये । वाह रे वाह' भागवत के बनानेवाले लालबुझकड ! क्या कहना तुझको, ऐसी २ मिथ्या बातें लिखने में तनिक भी लज्जा और शरम न अाई निपट अन्वा ही बन गया । स्त्री पुरुष के रजवीर्य के सयोग से मनुष्य तो बनते ही है परन्तु परमेश्वर की सृष्टिक्रम के विरुद्ध पशु, पक्षी, सर्प आदि कभी उत्पन्न नहीं हो सकते ! और हाथी, ऊट, सिह, कुत्ता, गधा और वृक्षादि का स्त्री के गर्भाशय में स्थित होने का अवकाश कहां हो सकता है ? और सिंह आदि उत्पन्न होकर अपने मा बाप को क्यों न खायये है और मनुष्यशरीर से पशु पक्षी वृक्षादि का उत्पन्न होना क्योकर संभव हो सकता है ? शोक है इन लोगों की रची हुई इस महा असम्भव लीला पर जिसने संसार को अभी सक भ्रमा रक्खा है। भला इन महाझुठ बातों को वे अन्धे पोप और बाहर भीतर की फूट आखवाले उनके चेले सुनत और मानते हैं बड़े ही आश्चर्य की बात है कि ये मनुष्य है वा अन्य कोई !!! इन भागवतादि पुराणों के वनानेहारे क्यों नहीं गर्भ ही में नष्ट होगये ? वा जन्मते समय मर क्यों न गये ? क्योंकि इन पापों से बचते तो - : र्यावर्त देश दु खों से बच जाता। ( प्रश्न ) इन बातों में विरोध नहीं सकता क्योंकि जिसका विवाह उसी के गीत जब विष्णु की स्तुति करने लगे तब विष्णु को परमेश्वर । अन्य को दास, जब शिव के गण गाने लगे तव शिव को परमात्मा अन्य को किंकर । | वनाचा अर परमेश्वर की माया में सब बन सकता है मनुष्य से उत्पत्ति परमेश्वर कर