पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३७७

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एकादशसमुल्लासः ।। = = = = = शाखा मिलती हैं शेष लोप, होगई हैं उन्हीं में मूर्त्ति पूजा और तीर्थों का प्रमाण होगा। जो न होता तो पुराणों में कहां से आता ? जब कार्य देखकर कारण का अनुमान होता है तब पुराणों को देखकर मूर्तिपूजा मे क्या शंका है?( उत्तर ) जैसे शाखा जिस वृक्ष की होती हैं उसके सदृश हुआ करती हैं विरुद्ध नहीं, चाहे शाखा छोटी बड़ी हो परन्तु उनमें विरोध नहीं हो सकता वैसे ही जितनी शाखा मिलती हैं जब इनमें पाषाणादि मूर्ति और जल स्थल विशेप तीर्थों का प्रमाण नहीं मिलता तो उन लुप्त शाखाओं में भी नहीं था और चार वेद पूर्ण मिलते हैं उनसे विरुद्ध शाखा कभी नहीं हो सकतीं और जो विरुद्ध हैं उनको शाखा कोई भी सिद्ध नहीं कर सकता, जब यह बात है तो पुराण वेदों की शाखा नहीं किन्तु संप्रदायी लोगों ने परस्पर विरुद्धरूप ग्रन्थ बना रक्खे हैं वेदों को तुम परमेश्वरकृत मानते हो तो "अाश्वलायनादि ऋषि मुनियों के नाम से प्रसिद्ध ग्रन्थों को वेद क्यों मानते हो ? जैसे डाली और पत्तों के देखने से पीपल, बड़ और आम्र अादि वृक्षों की पहचान होती है वैसे ही ऋषि मुनियों के किये वेदाग चारों ब्राह्मण, अग उपांग और उपवेद आदि से वेदार्थ पहिचाना जाता है इसलिये इन ग्रन्थो को शाखा मानी है जो वेदों से विरुद्ध है उसका प्रमाण और अनुकूल का अप्रमाण नहीं हो सकता । जो तुम अदृष्ट शाखाओं में मूर्ति आदि के प्रमाण की कल्पना करोगे तो जब कोई ऐसा पक्ष करेगा कि लुप्त शाखाओं में वर्णाश्रम व्यवस्था उलटी अर्थात् अन्त्यज और शूद्र का नाम ब्राह्मणादि और ब्राह्मणादि का नाम शूद्र अन्त्यजादि, अगमनीयागमन, अकर्तव्याकर्त्तव्य, मिथ्याभापणादि धर्म, सत्यभापणादि अधर्म आदि लिखा होगा तो । तुम उसको वही उत्तर दोगे कि जो हमने दिया अर्थात् वेद और प्रसिद्ध शासन में जैसा ब्राह्मणादि का नाम ब्राह्मणाद और शूद्रादि का नाम द्रादि लिखा है वैमा ही अदृष्ट शाखाओं में भी मानना चाहिए नहीं तो वर्णाश्रम व्यवस्था :दि स - न्यथा हो जायेंगे । भला जैगिनि व्यास और पतञ्जलि के मगच पर्यन्त तो सब । शाखा विद्यमान थी वा नहीं ? यदि नही थी तो तुम कभी निषेध न कर म ग र जो कहो कि नहीं था तो फिर शाग्वा के होने का क्या प्रमाण ? ३ ३मिति ने मामासा में सब कर्मकाण्ड, पतलि मुनि ने योगाय में मन चासन१८३ और व्यासमुनि ने शाररिक सूत्रों में सब नइ वेदानुकुल ।।। उनमें ५५३३३३ | मूर्तिपूजा वा प्रयागादि तथंका नभ तक भी नई २१ : ३६ -११ ६; } में होता तो लिखे बिना कभी न ने इससे न द ५५ में भी दर •५: ५६ == = = = = = = =