पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३७८

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३६८ सत्यार्थप्रकार. ।। का प्रमाण नही था । ये सब शाखा वेद नहीं है क्योंकि इनमें ईश्वरकृत वेदों की प्रतीक धर के व्याख्या और संसारी जनों के इतिहासादि लिखे हैं इसलिये वेद में कभी नहीं हो सकते वेद मे तो केवल मनुष्यों को विद्या का उपदेश किया है किसी ! मनुष्य का नाम मात्र भी नहीं इसलिये मूर्तिपूजा का सर्वथा खडन हैं। देखो' मूर्तिपूजा । से श्रीरामचन्द्र, श्रीकृष्ण, नाराण और शिवादि की बड़ी निन्दा और उपहास होता । है, सब कोई जानते हैं कि वे बड़े महाराजाधिराज और उनकी स्त्री सीता तथा रुक्मिणी लक्ष्मी और पार्वती आदि महारणिया था, परन्तु जब उनकी मूर्तियां मन्दिर अदि में रख के पूजारों लोग उनके नाम से भीख मांगते हैं अर्थात् उनको भिखारी वनात हैं कि अअ महाराज ! महाराजाजी सेठ साहूकारो ! दर्शन कीजिये, बैठिये, चरणामृत लीजिए, कुछ भेट चढाइये, महाराज | सीताराम, कृष्ण रुक्मिणी वा राधाकृष्ण, लक्ष्मीनारायण और महादेव पार्वतीजी को तीन दिन से बालभोग । वा राजभोग अर्थात् जलपान वा खानपान भी नहीं मिला है |ज इनके पास । कुछ भी नहीं है सीता आदि को नथुनी आदि राणीजी वा सेठानीजी वनवादीजिये, अन्न अादि भेजा तो रामकृष्णादि का भोग लगावे, वस्त्र सव फट गये हैं, मन्दिर : के कोने सव गिर पड़े हैं, ऊपर से चूता है और दुष्ट चार जो कुछ था उसे उठा ले । गये कुछ ऊंदरों ( चूहों ) ने काट कूट डाले देखिये । एक दिन ऊदरों ने ऐसा अनर्थ किया कि इनकी अखि भी निकाल के भाग गये । अब हम चादी की आख न बना सके इसलिये कडी की लगा दी है। रामलीला और रासमण्डल भी करवाते हैं, सीताराम राधाकृष्ण नाच रहे हैं राजा और महन्त अदि उनके सेवक अनन्द में बैठे हैं! सन्दिर में मीतारामादि वडे और पूजारी वा महन्तजी आसन अथवा गद्दी पर तकिया। लगाये बैठे हैं, उष्णकाल में भी ताला लगा भीतर वद कर देते हैं और आप सुन्दर वायु । में पलंग बिछाकर सोते हैं बहुत से पूजारी अपने नारायण को डब्बी में बदकर ऊपर से । कपड़े आदि बांधे गले में लटकी लेते हैं जैसे कि वानरी अपने वचे को गले में लटका लेती । है वैसे पुजारियों के गले में भी लटकते हैं जब कोई मूर्ति को तोड़ता है तब हाय २ कर छाती पीट वकते हैं कि सीतारामजी राधाकृष्णजी और शिवपार्वतीजी को दुष्ट ने तोड़ डाला । अव दूसरी मूर्ति मगवा कर जो कि अच्छे शिल्पा ने संगमरमर की वनाई हो स्थापन कर पृजना चाहिये नारायण को घी के विना भोग नहीं लगतो बहुत नहीं तो थोड़ासा अवश्य भेज देना इत्यादि बातें इन पर ठहराते हैं । | और रामगण्डन वा रामलीला के अन्त में सीताराम वा राधाकृष्ण से भीख !