पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३८१

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एकदिशसमुल्लास्रः ।। • • • डाल मिला कर पीते है ये पामर ऐसे कग को मुक्ति के साधन मानते है विद्या विचार सज्जनतादि रहित होते हैं । ( प्रश्न ) शैव मतवाले तो अच्छे होते हैं ? ( उत्तर ) अच्छे कहां से होते हैं! जैसा प्रेतनाथ वैसा भूतनाथ' जैसे वाममार्गी मन्त्रोपदेशादि से उनका धन हरते हैं वैसे शैव भी ‘ओं नम: शिवाय इत्यादि पञ्चाक्षरादि मन्त्रों का उपदेश करते, रुद्राक्ष भस्म धारण करते, मट्टी के और पाषाणादि के लिङ्ग बनाकर पूजते हैं और हर हर ब ब और बकरे के शब्द के समान बड़े बड़े बड़ मुख से शव्द करते हैं उसका कारण यह कहते हैं कि ताली बजाने और ब ब शब्द बोलने से पाचैती प्रसन्न और महादेव अप्रसन्न होते हैं क्योंकि जब भस्मासुर के आगे से महादेव । भागे थे तब ब ब और ठट्टे की तालियां बजी थीं और गाल बजाने से पार्वती अप्रसन्न और महादेव प्रसन्न होते हैं क्योंकि पार्वती के पिता दक्ष प्रजापति का शिर काद आग में हाल उसके धड पर बकरे का शिर लगा दिया था उसी अनुक्ररण के बकरे के शब्द के तुल्य गाल बजाना मानते हैं शिवरात्री प्रदोष का व्रत करते हैं इत्यादि से मुक्ति मानते है इसलिये जैसे वाममार्गी भ्रान्त हैं वैसे शैव भी, इन में विशेष कर कनफटे, नाथ, गिरी, पुरी, वन, अरण्य, पर्वत और सागर तथा गृहस्थ भी शैव होते हैं कोई ३ * दोनों घोड़ों पर चढ़ते हैं।' अर्थात् वाम और शैव दोन मतों को मानते हैं और कितने ही वैष्णव भी रहते हैं उनका. -- अन्तः शाक्ता बहिश्शैवाः सभामध्ये च वैष्णवाः । नानारूपधराः कला विचरन्ति महीतले ॥ यह तन्त्र का श्लोक है । भीतर शक्ति अर्थात् वाममार्गी बाहर शैव अर्थात् रुद्राक्ष भस्म धारण करते हैं और सभा में वैष्णव कहते है कि हम विष्णु के उपासक हैं ऐसे नाना प्रकार के रूप धारण करके वाममार्गी लोग पृथिवी में विचरते हैं। ( प्रश्न ) वैष्णव तो अच्छे हैं ? ( उत्तर ) क्या धूल अच्छे हैं। जैसे वे वैसे ये हैं देख लो वैष्णवों की लीला अपने को विष्णु का दास मानते हैं उनमें से श्रीवैष्णव जो कि चक्राङ्कित होते है वे अपने को सर्वोपरि मानते है सो कुछ भी नहीं हैं ! (प्रश्न ) क्यों ' सव कुछ नहीं ? सब कुछ हैं देखो ललाट में नारायण के चरणारविन्द के सदृश तिलक और बीच में पीली रेखा श्री होती है इसलिये हम अ