पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४०२

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सत्यार्थप्रकाशः ॥ नाककटों की बातें सुनाई दीवान ने कहा कि सुनिये महाराज ! ऐसी शीघ्रता न करनी चाहिये विना परीक्षा किये पश्चात्ताप होता है (राजा) क्या ये सहस्र पुरुष झूठ वोलते होंगे ? ( दीवान) झूठ बोलो वा सच विना परीक्षा के सच झूठ कैसे कह सकते हैं ? ( राजा ) परीक्षा किसी प्रकार करनी चाहिये ? ( दीवान ) विद्या सृष्टिक्रम प्रत्यक्षादि प्रमाणों से ( राजा) जो पढ़ा न हो वह परीक्षा कैसे करे ? ( दीवान) । विद्वानों के संग से ज्ञान की वृद्धि करके । ( राजा ) जो विद्वान् न मिले तो ' } ( दीवान ) पुरुषार्थी को कोई वात दुर्लभ नहीं है । ( राजा ) तो आप ही कहिये कैसा किया जाय ? ( दीवान) मैं वुड्ढा और घर में बैठा रहता हूँ और अब थोड़े दिन जीऊंगा भी इसलिये प्रथम परीक्षा मैं कर लेॐ तत्पश्चात् जैसा उचित समझें । वैसा कीजियेगा। (राजा) वहुत अच्छी बात है। ज्योतिषीजी दीवानजी के लिये मुहूर्त देखो। ( ज्योतिपी) जो महाराज की आज्ञा, यही शुक्ल पंचमी में १० वजे का मुहूर्त | अच्छा है जब पंचमी आई तव राजाजी के पास आठ बजे बुड्ढे दीवानजी ने राजाजी से कहा कि सहस्र दो सहस्र सेना लेके चलना चाहिये। (राजा) वहां सेना का क्या । काम है? ( दीवान ) अपको राजव्यवस्था की जानकारी नहीं है जैसा मैं कहता हु । वैसा कीजिये।(राजा) अच्छा जाओ भाई सेना को तैयार करो, साढे नौ बजे सवारी करके राजा सवको लेकर गया। उनको देखकर वे नाचने और गाने लगे, जाकर बैठे उनके महन्त जिसने यह सम्प्रदाय चलाया था जिसकी प्रथम माक कटी थी उसको बुलाकर कहा कि आज हमारे दीवानजी को नारायण का दर्शन कराओ, उसने कहा अच्छा, दश वजे का समय जब अ'चा तब एक थाली मनुष्य ने नाक के नीचे पकड़ रक्खी उस ने पैना चक्कू ले नाक काट थाली में डाल दी और दीवानजी की नाक से कांवर की धार छूटने लगी दीवानजी का मुख मलीन पड़ गया । फिर उस धूर्त ने दीवानजी के कान में मन्त्रोपदेश किया कि आप भी हँसकर अव मे कहिये कि मुझको नारायण दीखता है अब नाक कटी हुई नहीं आवेग जा ऐसा न कहोगे तो तुन्हारा । वडा ठट्ठा होगा, सब लोग हँसी करेंगे, वह इतना कह 'अलग हुआ और दीवाना ने अंगोछा हाथ में ले नाक की आड़ में लगा दिया जब दीवानजी से राजा ने पूछा कहिले नारायण दाखवा वा नहीं ? दीवानजी ने राजा के कान में कहा कि कुछ भी नहीं बना पृथा इस धुत्त ने सहस्त्रं मनुष्य को भ्रष्ट किया राजा ने दीवान । ६ । म क्या करना चाहिये ? दीवान ने कहा इनको पकड़ के कठिन दुई !