पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४०६

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सत्य : ।। -~-~-~~--~ • •• | ब्राह्मसमाजी और प्रार्थनासमाजियों का एतदेशस्थ संस्कृत विद्या ने रहित अपने के विद्वान् प्रकाशित करनी इंगलिश भापा पदके पण्डिताभिमान होकर भदिति एक मत चलाने में प्रवृत्त होना मनुष्यों को स्थिर और वृद्धिकारक काम क्योंझर हो सकता । है ?,४-अगरेज, यवन, अन्त्यजादि से भी खाने पीने का भेद नहीं रखा इन्होंने । यही समझा होगा कि खाने पीने और जातिभेद तोडने से हम और हमारा देश । सुधर जायगा परन्तु ऐसी बात से सुधार तो कहा है उलटा बिगाड़ होता है। ५-(प्रश्न) जातिभेद ईश्वरकृत हैं वा मनुष्यकृत ? ( उत्तर ) ईश्वरकृत और मनुष्चकृत । भी जातिभेद हैं । (प्रश्न) कौनसा ईश्वरकृत ? और कौनसा मनुष्वकृत ? ( उत्तर) | मनुष्य, पशु, पक्षी, वृक्ष, जल, जन्तु आदि जातिया परमेश्वरकृत हैं जैसे पशुओं में ! गौ, अश्व, हरित आदि जातियां, वृक्षों में पीपल, वट, आम्र आदि, पक्षियो मैं हंस, काश, वकादि, जलजन्तुओं में मत्स्य, मकरादि जातिभेद हैं वैसे मनुष्यों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, अन्त्यज जातिभेद हैं ईश्वरकृत हैं परन्तु मनुष्यों में ब्राह्मणादि को सामान्य जाति में नहीं किन्तु सामान्य विशेषात्मक जाति ने गिनते हैं जैसे पूर्व वर्णाश्रमव्यवस्था में लिख आये वैसे ही गुण, कर्म, स्वभाव से वर्णव्यवस्था माननी अवश्य हैं इस मनुष्यकृतत्व उनके गुण, कर्म, स्वभाव से पूवोंकानुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्रादि वर्ण की परीक्षापूर्वक व्यवस्था करनी राजा और विद्वानों को काम । भोजन भेद भी ईश्वरकृत और मनुष्यत है जैसे सिंह मांसाहारी और अर्णा भंसा घासादि का प्रहार करते हैं यह ईश्वरकृत और देश काल वस्तु भेद से भोजन भेद मनुष्यकृत हैं। प्रश्न ) देखो यूरोपियन लोग मुण्डे जूते, कोट, पतलून परते, होटल में सव के हाथ का खाते हैं इसीलिये अपनी बढ़ती करते जाते हैं (उत्तर ) यह तुम्हारी भूल है क्योंकि मुसलमान अन्त्यज लोग सव के हाथ का खाते हैं पुनः उनकी उन्नति क्यों नहीं होती ? जो यूरोपियना में बाल्यावस्था में विवाह न करना, लड़का लड़की को विद्या सुशिक्षा करता कराना, खयंवर विवाह होना, बुरे २ आदमियों का उपदेश नहीं होता, वे विद्वान् होकर जिस किसी के पाखण्ड में नहीं हँसते जो कुछ करते हैं वह सब परस्पर विचार और सभा से निश्चित करके करते हैं अपनी खजाति की उन्नति के लिये तन मन धन व्यय करते हैं लक्ष्य को छोड़ उद्योग किया करते हैं देखो अपने देश के वने हुए जूते को कायालय (आफिन और कचहरी में जाने देते है इस | देशी जूते को नहीं, इतने ही में समझ ले कि अपने देश के वने जूतों का भी कितना