पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४५०

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| सत्यार्थप्रका: ।। । वैसे दो पक्षों का एक मास वैसे बारह महीनी का एक वर्ष' होता है वैसे सत्तर लाख झोड़, छप्पन सहुत कोड वप का एक पूर्व होता है, ऐसे असंख्यात पूर्वी का एक “पल्यापम काल कहते हैं। असंव्यात इसको कहते हैं कि ! एक चार कोश का चौरस और उतना ही गदरा कुआ खोद कर उसको जुगुलिये मनुष्य के शरीर के निम्नलिखित वालो के टुकड़े से भरना अर्थात् वर्तमान मनुष्य ; के बाल से जुगुलिये मनुष्य का वाल चार हजार छानवे भाग सूक्ष्म होता है, जब । जुगुलिये मनुष्यों के चार सहन छानने वालों को इकट्ठा करें तो इस समय के मनुष्यों का एक वाल होता है ऐसे जगुलिये मनुष्य के एक बाल के एक अंगुल भाग के ; सात वार आठ २ टुकड़े करने से २०६७१५२ अर्थात् बीस लाख सत्तानवे सइत्र एकसौ वावनडुकड़े होते हैं, ऐसे टुकड़ों से पूर्वोक्त कुआको भरना उसमें से सौ वर्ष के अन्तरे एक २ टुकडा नि काजन जप सब टु डे निकले जावें और कु र खाली होजाय वो भी : वह संख्यात काल है और जब उनमें से एक २ टुकड़े के असंख्यात टुकड़े करके उन दुकड़ों से उसी कुए को ऐसा ठस के भरना कि उसके ऊपर से चक्रवर्ती राजा की सेना चल जाय तो भी न दवे उन टुझड़ों में से सौ वर्ष के अन्तरे एक टुकड़ा नि , काले जब वह कुमारीता हो जाय तब उसमें असंख्यात पूर्व पड़े तब एक २ पल्यपम काल होता है। वह पल्पोप म काल कुआ के इग्रान्त से जानना, जब देश कोड़ा क्रोड पल्यापम काल बीते तब एक सागरोपम” काल होता है, जब दश क्रोडा , क्रोड़ सागरोपम झाल बीत जाय तब एक उत्सप्पणी काल होता है और जब एक उत्सप्पणी और एक अवसप्पणी काल बीत जाय तव एक कालचक्र होता है। जब अनन्त कालचक्र बीत जावें तव एक पुद्गलपरावृत्त होता है, अब अनन्तकाल । किसको कहते हैं जो सिद्धान्त पुस्तकों में नव दृष्टान्तों से काल की संख्या की है। उससे उपरान्त “अनन्तकाल कहता है, वैसे अनन्त पुद्गल परावृत्त काल जीव को भ्रमते हुए बीते है इत्यादि । सुनो भाई गणित विद्यावाले लोगों ! जैनियों के ग्रन्थों की कालसंख्या कर सकोगे वो नहीं ? और तुम इसको सच भी मान सकोगे वा नहीं ? देखो. इन तीर्थंकरों ने ऐसी गणितविद्या पढ़ी थी ऐसे २ तो इनके मत में गुरु और शिष्य हैं जिनकी अविद्या का कुछ पारावार नहीं । और भी इनका अन्धेर सुतो रत्नसार भाग पृ० १३३ से लेके जो कुछ बुटवोल अर्थात् जैनियों के सिद्धान्त ग्रन्थ जो कि उनके । तीर्थकर अर्थात् ऋषभदेव से लेके महावीर पर्यन्त चौबीस हुए हैं उनके वचन का’ |