पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४५२

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-- - - ४४८ सत्यार्थप्रकाश: ।। ऐसे बड़े २ शरीरवाले जीव भी जैनी लोगों ने देखे होंगे और मानते हैं और कोई | बुद्धिमान् नहीं मान सकता ! ( रत्नसारभा० पृ० १५५ ) जलचर गर्भज जीवों का देहमान उत्कृष्ट एक सहस्र योजन अर्थात् ११०००००० एक क्रोड कोशों का और आयुमान एक क्रोड़ पूर्व वर्षों का होता है इतने बड़े शरीर और युवाले जीवों को भी इन्हीं के आचार्य ने स्वप्न में देखे होंगे । क्या यह महा झूठ बात नहीं कि जिस का कदापि सम्भव न होस के ! ॥ अब सुनिये भूमि के परिमाण को । (रत्नसार भा० पृ० १५२) इस तिरछे लोक । में असंख्यात द्वीप और असंख्यात समुद्र हैं इन असंख्यातका प्रमाण अर्थात् जो अढाई सागरोपम काल में जितना समय हो उतने द्वीप तथा समुद्र जानना अव इस पृथिवी में "जम्बूद्वीप’’ प्रथम सव द्वीपों के बीच में है इसका प्रमाण एक लाख योजन अर्थात् एक अरव कोश का है और इसके चारों ओर लवण समुद्र है उसका प्रमाण दो लाख योजन कोश का है अर्थात् दो अरब कोश का । इस जम्बूद्वीप के चारों ओर जो **धातकीखण्ड' नाम द्वीप है उसका चार लाख योजन अर्थात् चार अरव कोश का प्रमाण है और उसके पीछे कालोदधि” समुद्र है उसका आठ लाख अर्थात् आठ अरब कोश का प्रमाण है उसके पीछे पुष्करावर्त्त' द्वीप है उसका प्रमाण सोलह कोश का है उस द्वीप के भीतर की कोरे हैं उस द्वीप के आधे में मनुष्य असते हैं और उसके उपरान्त असंख्यात द्वीप समुद्र हैं उनमें तिर्यग् योनी के जीव रहते हैं। ( रत्नसार भा० १० १५.३ ) जम्बूद्वीप में एक हिमवन्त, एक ऐरण्डवन्त, एक हरिवर्य, एक रन्यक, एक देवकरु, एक उत्तरकुरु ये छः क्षेत्र हैं।। ( समीक्षक ) सुनो भाई ! भूगोलविद्या के जाननेवाले लोगों ! भूगोल के परिमाण करने मे तुम भले वा जैन ! जो जैन भूल गये हों तो तुम उनको समझाओ और जो तुम भूले हो तो उनसे समझ लेस्रो थोड़ासा विचार कर देखो तो यही निश्चय होता है कि जैनियों के प्राचार्य और शिघ्र्चा ने भूगोल खगोल और गणितविद्या कुछ भी नहीं पढ़ी थी पढे होते तो महा असंभव गपोइ क्यों मारते ? भला ऐसे विद्वान् पुरुष जगत् को अकर्तक और ईश्वर को न मान इसमें क्या आश्चर्य है ? इसलिये जैनी लोग अपने पुस्तकों को किन्हीं विद्वान् अन्य मतस्यों को नहीं देते क्योंकि जिनको ये लोग प्रामाणिक तीर्थङ्करों के बनाये हुए सिद्धान्त ग्रंथ मानते हैं उनमें इसी प्रकार की अविद्यायु वात भरी पड़ी हैं इसलिये नहीं देखने देते जो देखें तो पोल खुल जाय इनके विना जो कोई | मनुष्य कुछ भी बुद्धि रखता होगा वह कदापि इस गपोड़ाध्याय को सत्य नहीं | - --