पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४८०

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| ४७८ सत्यार्थप्रकाशः । सकता क्योंकि हम दूरस्थ वात करें और वायु हमारी ओर से दूसरे की ओर जाता हो तो सूक्ष्म होकर उसके शरीर पर वायु के साथ त्रसरेणु अवश्य गिरेंगे उसका दोष निना अविद्या की बात है क्योंकि जो मुख की उष्णता से जीव मरते वा उनको पीड़ा पहुंचती हो तो वैशाख वः ज्येष्ठ भने में सूर्य की महा उष्णता से वायुकाय * जीवों में से मरे बिना एक भी न बच सके, वो उस उष्णता से भी वे जीव नहीं मर सकते इलिये यह तुम्हारा विद्धान्त झूठा है क्योंकि जो तुम्हारे तीवेकर भी पूर्ण विद्वान् होते तो ऐसी व्यर्थ वातें क्यों करने १ देखो ! पीड़ा उन्हीं जी को पहुंचती है जिनकी वृत्ति वर्ष अवयवों के साथ विद्यमान हो, इसमें प्रमाणः - पञ्चव जत्रयो3व तिः ॥ सांख्य० अ० ५ । सू० २७ ॥ - जब पाच इन्द्रियों का पांच विषयों के साथ सम्बन्ध होता है तभी सुख वा दुःख झी वात जीव को देती हैं जैसे वर * गाऊ4६।ने, अन्धे को रूप वा आग से भई 55.६ भयदाय के जीवों का चजा जाना, शून्य वहिरीवाले को स्पर्श, विनच रोगवाले को गन्ध र शन्य जिह्वावले को रव प्राप्त नहीं हो सकते। इसी प्रकार उन जीव की भी व्यवसाई। देउ ! जय नन्ः। 5 जव उत दशा में रहता है तब इधक सुख व द.खे की ते कुछ भी नहीं होती, काकि वह शरीर के भीतर } तो हैं परन्तु उवका हर के अवयव के साथ उस समय सम्बन्ध न रहने से सुख । दुःस की नाति भी कर सकता और नेचे वैद्य वा अजज के डाक्टर लोग न । की वस्तु जिल्ला वा सुन के रोग पुरुष के शरीर के अवयवों को काटने वा चीरत ६ 3 1 5 उध भी 53 भी द:३३दत नहीं होता, बैंजे वायु काय अथवा अन्य यावर शरीरबाले जीवों को मुख वा दुःख नत्र न हो सकता जैन म । प्रा सुन्य दृ उ ऋ ३.त नहीं है। अत: ३३ वे चाव 5 पद के जीव भी अन्ठ मू{ * तु दु प हैंप्राप्त नहीं हो सकते फिर इनको पीड़ा से बयान ॥ मत ६ ४ ३ ३ ३ ३ ? ज उन 5ो से व दु:ख की प्राप्ति है। प्रत्यॐ न । ८६) गुना : ५। ॐ ॐ स । ( प्रश्न ) जब वे ज ३ ६ । । १२.६ : :.: । न , ( उत्तर ) मुनेः भोले भाइयो ! ३१ नम: 34 * * 1 ३ 14 रन 5 भुवः प्राप्त ¥यों न त ? बुर दुःॐ * * ;; ६ । :* :, ५ ६१ ३१, ३३ ३ ३ ३ ने सुत्र *