पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४८७

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१५ द्वादशसमुल्लासः ॥ दो ससि दो राव पंत इगंतरियाछ सठिसंखाया। मेरुपयाहिर्णता । माणुसखित्ते परिअडेति ॥ प्रकरण० भा० ४ । संग्रह० ७६ ॥ मनुष्यलोक में चन्द्रमा और सूर्य की पंक्ति की संख्या कहते हैं दो चन्द्रमा और दो सूर्य की पंक्ति ( श्रेणी ) है वे एक २ लाख योजन अर्थात् चार लाख कोश के अांतरेसे चलते हैं, जैसे सूर्य की पंक्तीके अतिरे एक पक्ती चन्द्र की है इसी प्रकार चन्द्रमा की 'पंक्ती के आंतरे सूर्य की पंक्ती है, इसी रीति से चार पंक्ती हैं वे एक २ चंद्रपंकी में ६६ चन्द्रमा और एक २ सूर्यपंक्ती में ६६ सूर्य हैं वे चारों पंक्ती जंबूद्वीप के मेर पर्वत की प्रदक्षिणा करती हुई मनुष्यक्षेत्र में परिभ्रमण करती हैं अर्थात् जिस समय जंबुद्वीप के मेरु से एक सूर्य दक्षिण दिशा में विहरता उस समय दूसरा सूर्य उत्तर दिशा में फिरता है, वैसे ही लवण समुद्र की एक २ दिशा में दो २ चलते फिरते, धातकीखण्ड के ६, कालोदधि के २१, पुष्कराद्ध के ३६, इस प्रकार सब मिलकर ६६ सूर्य दक्षिण दिशा और ६६ सूर्य उत्तर दिशा में अपने २ क्रम से फिरते हैं। और जब इन दोनों दिशा के सब सूर्य मिलाये जायें तो १३२ सूर्य और ऐसे ही बासठ २ चन्द्रमा की दोनों दिशाओं की पक्तियां भिलाई जायें तो १३२ चन्द्रमा मनुष्य लोक में चाल चलते हैं। इसी प्रकार चन्द्रमा के साथ नक्षत्रादि की भी पंक्तियां बहुत सी जाननी । ( समीक्षक ) अब देख भाई ! इस भूगोल में १३२ सर्य और १३२ चन्द्रमा जैनियों के घर पर तपते होगे भला जो तपते होंगे तो वे जीते कैसे हैं ? और रात्रि में भी शीत के मारे जैनी लोग जकड़ जाते होंगे ? ऐसी असम्भव बात में भूगोल खगोल के न जाननेवाले हँसते हैं अन्य नहीं । जब एक सुर्य इस भूगोल के सदृश अन्य अनेक भूगोलों को प्रकाशता है तब इस छोटे से भूगोल की क्या कथा कहन? और जो पृथिवी न घूमे और सूर्य पृथिवी के चारों ओर न घूमे तो कई एक वर्ष का दिन और रात होवे । और सुमेरु विना हिमालय के दूसरा कोई नहीं यह सूर्य के सामने देखा है कि जैसे घई के सामने राई का दाना भी नहीं इन बात को जैनी लोगे जबतक उसी मत में रहेंगे तबतक नहीं जान सकते किन्तु सदा अंधेर में रहेंगे ।। समत्तचरण सहियासवंलोगं फुसे निरवसेस । सत्तयचउदसभाए पचयसुपदेसविरईए ॥ -- - - --