पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

१८८ सत्यार्थप्रकाशः || ते थूला पल्ले विहुसं खिज्जाचे वहुति सव्वेवि । तेइकिक असंखे । सुहुमे खम्मे पकप्पेह ॥ प्रकरण० भा० ४ लघुक्षेत्र। समासप्रकरण सूत्र ४ ॥ पूर्वोक्त एक अद्भुल लोमके खण्डों से ४ कोश का चौरस और उतनाही गहिरा कुआ हो, अङ्गुल प्रमाण लोम का खण्ड सब मिलके वीस लाख सत्तावन सहस्र एकसौ बावन होते हैं और अधिक से अधिक ( ३३०, ७६२१०४, २४६५६२५, ४२१९९६०,९७५३६००, ०००००००) तेंतीस क्रीड़ाक्राडी सात लाख बासठ हजार एकसौ चार कोड़ाकोड़ी, चौबीस लाख पैंसठ हजार छ: सौ पच्चीस इतने कोड़ाकोड़ी तथा व्यालीस लाख उन्नीस हजार नौ सौ साठ इतने कोड़ाकोडी तथा सचानवे लाख त्रेपन हजार और छः सौ कोडाकोड़ी, इतनी वाटला धन योजन पल्योपम में सर्व स्थूल रोम खण्ड की संख्या होवे यह भी संख्यातकाल होता है पूर्वोक्त एक लोम खण्ड के असंख्यात खण्ड मनसे कल्पे तब असंख्यात सूक्ष्म रोमाणु होवें ! ( समीक्षक) अब देखिये ! इनकी गिनती की रीति एक अंगुले प्रमाण लोम के कितने खण्ड किये यह कभी किसी की गिनती में आ सकते हैं ? और उसके उपरान्त मन से असंख्य खण्ड कल्पते हैं इससे यह भी सिद्ध होता है कि पूर्वोक्त खण्ड हाथ से किये होंगे जब हाथ से न होसके तव मन से किये भला यह बात कभी सम्भव हो सकती है । कि एक अंगुल रोम के असंख्य खण्ड होसके १ ।। जंबूदीपपमाणं गुलजोयाणलरक वद्दविरकंभी । जवणाईयासेसी । बलया भादुगुणदुगुणाय ॥ प्रकरणर० भा० ४ । लघुक्षेत्रसमा० सं० १२ ॥ प्रथम जंवृद्वीप का लाख योजन का प्रमाण और पोला है और बाकी लवणादि सात समुद्र, सात द्वीप, जंबूद्वीप के प्रमाण से दुगुण २ हैं इसे एक पृथिवी में जबूढ़ीपादि सातद्वीप और सात समुद्र हैं जैसे कि पूर्व लिख आये हैं।( समीक्षक ) अब जंबूद्वीप से दूसरा द्वीप दो लाख योजन, तीसरा चार लाख योजन, चौथा आठ लाख योजन, पाचवां सोलह लाख योजन, छठा वत्तीस लाख योजन और सातवां चौसठ लाख योजन और उतने प्रमाण वा उनसे अधिक समुद्र के प्रमाण से इस पन्द्रह सहप्त