पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

- 44 -4- =-=-=-

-

- =- =- = | सत्यार्थप्रणः । ५६६ kunma -= = = 1 पशु पक्षी भी दुष्ट होगये यदि वह ईश्वर सर्वज्ञ होता तो ऐसा विषादी क्यों होता ? इसलिये यह न ईश्वर र न यह ईश्वरकृत पुस्तक हो सकता है जैसे वेदोक्त पर मेश्वर, सय माप, केश, दुःख शोकादि से रहित सच्चिदानन्दस्वरूप है, उसको | ईसाई लोग मानते वा अव भी मानें तो अपने मनुष्यजन्म को सफल कर सकें ॥१३॥ १३--उस नाव की लम्बाई तीनसौ हाथ और चौड़ाई पचास हाथ और ऊ । चाई तीस हाथ की होवे ।। १ नाव में जाना तू भौर तेरे बेटे और तेरी पत्नी और तेरी । | वेदों की पत्नियां तेरे साथ और सारे शरीरों में से जीवता जन्तु दो २ अपने साथ नाव में लेना जिससे वे तेरे साथ जीते रहें वे नर और नारी होवें ।। पंछीमें से उसके भांति ३ के और दोर + में से उसके भांति २ के और पृथिवी के इरएक रेंगवैयों में से भांति २ के हरएक में से दो २ तुझ पास आवें जिससे जीते रहे । । और तू अपने लिये खाने को सव सामग्री अपने पास इकट्ठा कर वह तुन्दारे और उनके लिये भोजन होगा !! सो ईश्वर की सारी प्रज्ञा के समान नूड़ ने किया है | तौ० पर्व ६ । ० १५ । १८ । १६ । २० । २१ । २२ ॥ समीक्षक-भला कोई भी विद्वान् ऐसी विद्या से विरुद्ध असम्भब बात के वक्ता को ईश्वर मान सकता है ? क्योंकि इतनी बड़ी चौड़ी ऊंची नाव में हाथी, इथनी, ऊंट, ऊंटनी अादि क्रोड़ जन्तु और उनके खाने पीने की चीजें व सर्व कुदुम्ब के भी समा सकते हैं । यह इसीलिये मनुष्यकृत पुस्तक है जिसने यह लस ! किया है वह विद्वान् भी नहीं था ।। १३ ।। - १४--और नूह परमेश्वर के लिये एक वेदी बनाई और सारे पवित्र पशु और हरएक पवित्र पंछियों में से लिये और होम की भेट उस वेदी पर चढ़ाई और परमेश्वर ने सुगन्ध सुंधा और परमेश्वर ने अपने मन में कहा कि आदमी के लिये मैं पृथिवी को फिर कभी स्राप न दूंगा । इस कारण कि आदमी के मन की भावना । उसकी लड़काई से बुरी है और जिस रीति से मैंने सारे जीवधारियों को मारा फिर कभी न मारूंगा ॥ तौ० पर्व ८ । अ० २० । २१ ॥ समीक्षक–बेदी के बनाने, होम करने के लेख से यही सिद्ध होता है कि ये बातें थे। से वाइवल में गई हैं क्या परमेश्वर के नाक भी है कि जिससे सुगन्ध सुंघा ? क्या यह इसाइयों का ईश्वर मनुष्यवन् अल्पज्ञ नहीं हैं ? कि कभी स्राप देता है और

  • चौपाए ।

|

=

= = =