पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५३९

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यांकुशमुखi द: । ५३७ - विभाग और विर नहीं पहुंचता है । जो तुम मुझे जानते तो मेरे पिता को भी जानते ॥ यो० प० १४ । अश० १ । २ से ३ । ४ । मैं । ७ ॥ समीक्षक-अब देखिये ये ईं के बचम क्या पोपलीला से कमती हैं, जो ऐसा प्रपंच न रचता तो उसके मत में कौन फंसता, क्या ईसा ने अपने पिता को ठेके में ले लिया है और जो वह ईसा के वश्य है तो पराधीन होने से वह ईश्वर ही नहीं क्योंकि ईश्वर किसी की सिफारिश नहीं सुनता, क्या ईस के पहिले कोई भी ईश्वर को नहीं प्राप्त हुआ होगा, ऐसा स्थान 'आादि का प्रलोभ न देता और जो अपने मुख से आप मा सय आर जीवन बनता है व अब प्रकार से दीं करता है इसमें यह बात सत्य कभी नहीं हो सकती ॥ ९४ ॥ ५-मैं तुम से सच २ कहता हूं जो मुझ पर विश्वास करे जो काम मैं करता हूं उन्हे दद भी करंग आर इनसे बड़े काम करेगा ! य० प - १४ t T० १२ ॥ समीक्षक-—अब देखिये जो ईसाई लोग ईसा पर पूरा विश्वास रखते हैं वैसे ही मुई जिलाने आदि काम क्यों नहीं कर सकते और जो विश्वास से भी आश्चर्य काम नहीं कर सकते तो ईसने भी आाश्वयं क में नहीं किये थे ऐसा निश्चित जानना चाहिये क्योंकि स्वयं ईखा ही कहता है कि तुम भी आश्चर्य काम करोगे तो भी इस समय ईसाई कोई एक भी नहीं कर सकता तो किसकी हिये की आंख फूट गई हैं वह ईसा को मुर्द जिलाने आदि का कामकत मान लेवे 11 ९५ ॥ १६-जो अद्वैत सत्य ईश्वर है : यो० प० १७ 1 आ० ३ ॥ समीक्ष--जब अद्वैत एक ईवर है तो ईसाइयों का तीन कना सर्वथा

९ मिथ दे ॥ ९६ । इसी प्रकार बहुत ठिकाने इंजील में अन्यथा बातें भी हैं । यहन के प्रकाशित वाक्य ॥ अब योहन की अद्भुत बा सुनt:--- १७ और अपने २ शिर पर सोने के मुकुट दिये हुए थे । और सात अग्मि- दीपक सिंहासन के आगे जलते थे जो इंश्वर के के सात आश्मा हैं 1 और सिंहान के आगे कॉच का समुद्र है और विहाखन के आस पास चार प्राण हैं जो आागे और पीछे नेत्रों से भरे हैं 1 यो ० प० प० ४ । अ० ४ 1 ५ । ६ ॥ समीक्षक-—अब देखिये एक नगर के तुल्य ईसाइयों का स्वर्ग है और इनका ।