पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५५७

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नहीं तो किसी पर दया और किसी पर क्रोध करना नहीं हो सकता । और इस सूरत की टिप्पम ‘यह सूर: अल्लाह छहेब ने मनुष्यों के मुख से कइलाई खा इस प्रकार ये कह करें’ जो यह बात है तो “आलिफ बे , आदि अक्षर खुद ही ने पढ़ाये होंगे, जो कहो कि विमा अक्षर ज्ञान के इस सूर: को कैसे पढ़ सके क्या कंठ ही से बुलाए और बोलते गये है जो ऐसा है तो सब कुरान ही कठझे पढ़ाया होगा इख खे ऐसा समझना चाहिये कि जिस पुस्तक में पक्षपात की बातें पाई जायें वह पुस्तक ईश्वर कृत नहीं हो सकता, जैसा कि अरबी भाषा में उतारने से अरबवालों को इस- का पढ़ना सुगम अन्य भाषा बोलनेवालों को कठिन होता है इससे खुदा में पक्षपात आता है और जैसे वे परमेश्वर ने पुष्टिस्थ सब देशस्थ मनुष्यों पर न्यायदृष्टि से खब देशभाषाओं से विलक्षण खंस्कृत भाषा कि जो सब देशवालों के लिये एकजे परिश्रम खे विदित होती है उसी में वेदों का प्रकाश किया है, करता तो यह दोष नहीं होता है। 2 ५-यद पुस्तक कि जिसमें बुंदेह नहीं परहेजगारों को मार्ग दिखलात है। जो ईमान लाते हैं साथ लैब (परोक्ष ) के नमाज पढ़ते और उस वस्तुझे जो हमने दी खर्ष करते हैं और वे लोग जो कुछ किताब पर ईमान जाते हैं जो रखते हैं तेरी और वा तु से पहिले उतारी गई और विश्वास कयामत पर रखते हैं । ये लोग अपने मालिक की शिक्षा पर हैं और ये ही छुटकारा पानेवाले हैं ॥ निश्चय जो काफिर हुए और उन पर तेरा डराना न डरना समान है वे ईमान न छावेंगे ॥ अल्लाह ने उनके दिल कानों पर मोहर करदी और उनकी आंखों पर पर्दा है। और उनके वास्ते बड़ा अज़ाब है ॥ से ० १ खि० १। सूत २ । आ० १२। ३, ४ से ५ । ६ ॥ C । समीक्षक-क्या अपने ही मुख से अपनी किताब की प्रशंसा करना खुदा की दुम्भ की बात नहीं है जब परहेजगार अत् धार्मिक लोग है वे तो स्वत: सच्चे मार्ग में हैं और जो झूठे मार्ग पर हैं उनको य३ कुरान मार्ग ही नीं दिखला सकता फिर किस काम का रहा। ५ क्या पाप पुण्य और पुरुषार्थ के देिना खुद अपने हाँ खजाने से खुचे करने को देता है? जो देता है तो सब को क्यों नहीं देता १ और मुसलमान लोग परिश्रम क्यों करते हैं मैं और जो वाइवल इजील आदि पर विश्वास करना योग्य है तो मुसलमान इजीत यादि पर ईमान जैसा कुरान पर है वैसा क्यों नहीं जाते है और