पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५९०

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५८८ त्यम: । - - - - ९५ -कk निश्चय अदाह गुमराह करता है जिसको चाहता है और मार्ग द्विखलता है तर्फ अपनी उम्र मनुष्य को रुजू करता है ॥ मं० ३ । खि० १३ । स्स० १३ आ० २७ ॥ व सीक्षक -जब अल्लाह गुमराह करता है तो खुदा और शैतान में क्या भेद आा १ जब कि शैतान दूरों को गुमराह अप्त ब लाने से बुरा कहता है तो खुद भी वैसा ही काम करने से बुरा शैत!न क्यों नहीं है और बहकाने के पाप चे दोजखो क्यों नहीं होना चाहिये ? ॥ ३५ ॥ ३६-इसी प्रकार उतारा ह्यूमने इस कुरान को आ जो पक्ष करेगा तू उन की इच्छा का पीछे इसके कि आई तेरे पात्र विद्या से ॥ बख खिवाय इसके नहीं कि ऊपर तेरे पैगाम पहुचाना है और अगर हमारे ३ दिसब लेना ॥ सं० ३। खि० १३ । ' स्० १३ । आया० ३७ ! 8 a i। समीक्षक-कुरन कि घर की ओर से उतरा ? क्या खा ऊपर रहता है जो यह बात सच है तो वइ एकद्देशी होने से इश्वर ही नहीं हो सकता क्योंकि ईश्वर सब ठि ने ए क़रठ व्यापक है, पैगाम पहुंचाना हजारे का काम है और इस्लारे की आवश्य सा उसी को होती है जो मनुष्यवत् एकदेशी हो और हिसाब लेना देना भी मनुष्य का ।म में ईश्वर का नहीं कि वह सर्वज्ञ है यह निश्चय होता है कि किसी अल्प मनुष्य झा बन।या कुरान है । ९६ ॥ ५७-अर किया सूर्य चन्द्र को सदैव फिरनेवाले ॥ निश्चय आमाद अबय ' अन्याय और पाप करनेवाला है ॥ म० ३। खि० १३ ० १४ ।आ० ३३। ३४ ॥ समीक्ष-क्या चन्द्र सूर्य दा किसे और टथिवा नहीं फिरती है जो थिवी नहीं फिरे तो कई वर्षों का दिन रात होवे । र जो समय निश्चय अन्याय और पाप करनेवला है तो कुरान से शिक्षा करना व्यर्थ है क्योंकि जिनका स्वभाव प। ही करने का है तो उनमें पुण्यारमा क भी न होगा और संचार में पुण्यात्म और पापात्मा बढा दीखते हैं इसलिये ऐती व ईश्वरकृह पुस्तक की नहीं हो सकी १७ ? ९८-चख ठीक करू में उम्र को और ऊं टू बीच डे सके हुई अपनी ये बस गिर पडो बारते उसके खिजदा करते हुए 11 का ऐ रख मेरे इस कारण कि } किया यू ने मुझ को अवश्य जीनत ह्यूग में वाले उनके बीच पृथिवी के र कहग म० ३। खि० १४ 4 जू० १५ 1 छा- ३९ से ३६ तक ॥ मदद