पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/६०४

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ईिe ' s r. ६०२ सत्याका: । थे h A - है । समीक्षक-यद वह अन्याय की बात है कि वह घर में बंद के समान रहे और पुरुष खुल्ले रहें, क्या बियों का चित्त शुद्ध वायु, शुद्ध देश में भ्रमण करना, सृष्टि के अनेक पदार्थ देखना नहीं चाहता होगा १ इसी अपराध से मुसलमानों के लड़के विशेष कर यानी और विषयी होते हैं अल्लाह और रसूल की एक अविरुद्ध आता है वा भिन्न २ विरुद्ध ? यदि एक है तो दोनों की अनुज्ञा पालन करते कहना व्यर्थ है और जो भिन्न २ विरुद्ध है तो एक सच्ची और दूसरी झूठी है एक ख़ुदा दूसरा शैतान होजायगा । और शरीक भी होगा ? वाह कुरान का ख़ुदा और ग़म्वर तथा कुरान को !जि ठ दूसरे का मतलब नष्ट कर अपना मतलब सिद्ध करना इष्ट हो ऐसी छला अवश्य रचता है इस ने यह भी सिद्ध हुआ कि, मु इम्मद साहेब बड़े विषयी थे यदि न होते तो (लेपाल ) बेटे की स्त्री को जो पुत्र की स्त्री थी अपनी स्त्री क्यों कर लेते ? और फिर ऐसी बातें करनेवाले का खुद भी पक्षपाती बना और अन्याय को न्याय ठहराया 1 मनुष्यों में जो जइली भी होगा वह भी बेटे की स्त्री को छोड़ता है और यह कितनी बडी अन्याय की बात है कि नवी को विष याशक्कि की लीला करने में कुछ भी अट काव नहीं होना ! यदि नत्री किसी का बाप न था तो जद ( नेपालक ) बेटा किसका था १ और क्यों लिखा है यह उसी म तजुब की बात है कि जिससे बेटे की स्त्री को भी घर में डालने से पैगम्बर साहेत्र न बचे अन्य से क्कर वचे होंगे ? ऐपी चतुराई से भो बुरी बात में निन्दा होना भो नहीं छूट का क्या जो कोई पराई । स्त्री भी नबी से प्रसन्न होकर निकाह करना चाहे तो भी हलाल है और यह मरे की बात है कि नबी तो जिव स्त्री को चाहे छोड देवे और मुहम्मद साहेब की की लोग यदि पैगम्बर अपराधी भी हो तो कभी न छोड़ सकें ! ॥ जै में पैगम्बर के घरों में अन्य कोई व्यभिचार दृष्टि से प्रवेश न करें तो वैसे पैगम्बर इब भी किसी के घर में प्रवेश न करें क्या नवी जिस किसी के घर में चाहें निश्शल प्रवेश करें औौर माननीय भी र भला कौन ऐसा हृदय का अन्षा है कि जो इत्र कुरान को ईश्वरस्कृत और मुहम्मद साहेब को पैग़म्बर और कुरानोक्त ईश्वर को परमेश्वर मान सके । बड़े की बात है कि ऐसे युक्किशून्य धर्मविरुद्ध बातों से युक इस मत को अवेदश ॥ ासी आदि मनुष्यों ने मान लिया !t १२७ ॥ • e - । १२८ नहीं योग्य वास्ते तुम्हारे यहूं कि दु:ख दो रसूल को यह कि निकाह करा यiय उफी को पीछे उस के कभी निश्चय यह है समीप अल्लाह के बड़ा पाप ॥