पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/६२३

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चतुदशखठछाद: । ६२१ ऋषीणां सर्वादिष्य इन्द्राय पूर्व माया परममन्तरिक्षा ॥ ६ ॥ । अलः पुथिया अन्तरिक्ष विश्वरूपम्र ॥ ७ ॥ इल्ली कबर इलाँ कबर इल इललेति इललाः ॥ ८ ॥ जो अलाइडला अनादस्वरूपाय अथर्वणाश्यामा हुं हीं जनानपशुनसिद्धा जलचरान् अदृष्ट कुरु कुरु फट ॥ & ॥ असुर संहारिणी हूं। हीं अल्लोरसूल सहमदरकबरस्य अल अलाम इलल्लैति इलला: । १० ॥ इत्यलोपनिषत् समाता ॥ ए . जो इसमें प्रत्यक्ष मुहम्मद साह्यवं रसूल लिखा है इससे सिद्ध होता है कि मुसलमा का मत वेदमूलक है ॥ ( उत्तर ) यदि तुमने अथर्ववेद न देखा हो तो सर पास आओ आदि से पूर्ति तक देखो अथवजिस किसी अथर्ववेदी के पास बीस कण्डयुक्त मन्त्रiहत अथर्ववेद को दुख लो कहीं तुम्हारे पैगम्बर साहब का नाम वा मत का निशान न देखोगे और जो यह अलोपनिषद् है वर्दा न अथर्ववेद में न उसके गोपथत्राह्मण शाखा में यहूं तो अकबरशाह के समय अनुमान है व iफज ६ में कि किसी ने बनाई है इसका बनानेवाला कुछ अरबी और कुछ संस्कृत भी पढ हुमा दी- खता है क्योंकि इसमें अरबी और संस्कृत के पद लिखे हुए दीखते हैं देख ( अस्मा क = लां इल्ले मित्रा वरुणा tदया, घने ) इत्यादि में जो िदशा अप में लिखा है, जैसे- इसमें ( अस्माल और इल्ले ) अरबी और (भा वरुण दियानि धले ) यह संस्कृत पद लिखे हैं वैसे ही सर्वत्र देखने में आने से संस्कृत और के पढे 191 ऑरवरी हुए ने बनाई है । यदि इस का मर्थ देखा जाता है तो यह कृत्रिम आयुक्त वेद और व्याकरण रीति से विरुद्ध है जैव । यहू उनिघ पद बनाई है वैसी बहुत सी उनिपटें , मतदान्तरवाले पक्षपातियों ने बनाती हैं जैसी कि त्ररोपोपनिषद्, खिइतrपनी रासतापी, गोपाल तपनी बहुतली बनाती हैं। ( प्रश्न ) आIजतक किसी ने ऐसा नहीं कहाअब तुम कहते हो, हम तुम्हारी बात कैसे मानें १(उचर) तुम्हारे मानने का

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