पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/६७

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५४ संध्यर्थक ' ! 74 के n का निश्चय होता है, इत्यादि जहा २ कारण को देख के कार्य का ज्ञान हो वह ‘पूर्व वस्' । दूसरा ‘शेपवत्र अर्थात् जहां कार्य को देख के कारण का ज्ञान हो जैसे ? नदी के प्रवाह की बढ़ती देख के ऊपर हुई वर्षा का, पुत्र को देख के पिता का, 1 स्मृष्टि को देख के अनादि कारण का तथा कर्ता ईश्वर का और पाइप पुण्य के आाच रण देख के सुख दु ख का ज्ञान होता है इसी को शेषव" कहते हैं । तीसरा ‘‘सा सान्यतोदृष्ट' जो कोई किसी का कार्य कारण न हो परन्तु किसी प्रकार का ध- " म्र्य एक दूसरे के साथ हो जैसे कोई भी विना वले दूसरे स्थान को सही जा सक- ता वैसे ही दूसरों का भी स्थानान्तर में जाता बिना गमन के कभी नहीं हो स कता में अनुमान शब्द का अर्थ यही है कि ‘अनु अथत प्रत्यक्षस्य पश्चासीय ज्ञायते येन तदनुमान जो प्रत्यक्ष के पश्चात् उत्पन्न हो जैसे धूम के प्रत्यक्ष देखे । विनय अदृष्ट आग्नि का ज्ञान कभी नही हो सकता । तोसा उपमान -1 प्रसिद्धसाधन्योत्साध्य साधनसुपमानम् ॥ न्याय० । अ० १ । आ० १ से ६ ॥ जो प्रसिद्ध प्रत्यक्ष साधों से साक्ष्य अर्थात् सिद्ध करने योग्य ज्ञान की सिद्धि में करने का साधन हो उसको उपमान कहते हैं । ‘‘उपमीयते येन तदुपमान’ जैसे फ़िरी ने किसी नृत्य से कहा कि ‘‘ यू विष्णुमित्र को बुलाल" वह बोला कि मैंने सको कभी नहीं देखा' उसके स्वामी ने कहा कि ‘जैसा यह देवदत्त है वैसा ही वह घिमित्र है" वा जैसी यह गाय है वैसी ही गवय अर्थात् नीलगाय होती है. जब वह वहा गया और देवदत्त के सश उसको देख निश्चय कर लिया कि यही विष्णुमित्र है उसको ले आया । अथवा किसी जहूल में जिस पशु को गाय के तुल्य देखा उसको निश्चय कर लिया कि इसी का नाम गवय है | चोथा शब्दप्रमाण आतोपदेः शव्दः ॥ न्या० अ० १ । आ० १ ।सू०७ ॥ जो आन अर्थात् पूर्ण विद्वान, धर्मात्मापरोपकारप्रिय, सत्यवादी, पुरुषार्थी, जिनेन्द्रिय पुस्प जता अपने मात्मा में जानता हो और जिससे सुख पाया हो टैम के कथन की इच्छा से प्रेरित सत्र मनुष्यों के कल्याणार्थ उपदेष्टा हो अर्थात् जो ( जितने विी से लेके परमेश्वर पगन्त पदार्थों का ज्ञान प्राप्त होकर उपदेष्ा होता है ।