पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/७२

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तासमुल्लास: । ५१ f - 7 Al e 1992 हैि कि के 5 , 5 - से इच्छाझेषप्रयतसुखदुःखज्ञानान्यात्मनोलिडुमति ॥ न्याय०) श्र० १ ॥ ० १० जिसमें ( इच्छा ) राग( झेष ) वैर, ( प्रयत्न ) पुरुषार्थ, सुख, दु:ख, 1 ( ज्ञान ) जानना गुण हों वह जीवात्मा कहलाता है । वैशेषिक में इतना विशेप है । प्राणाsपाननिमेषोन्मेषजीवनमनोगतीन्द्रियान्तर्विकारा सुखदुःखेच्छाझेषप्रयत्नाश्चात्मनो लिलमनि ॥ वै० ! अ० ३ । आ० २ । सू० ४ ॥ (प्राण ) बाहर से वायु को भीतर लेना ( अपान ) भीतर से वायु को निका लना (निमेष आंख को नीचे ढांकना (उन्मेष ) आंख को ऊपर उठाना ( जीवन ) । प्राण का धारण करना (संनः ) सनन विचार अर्थात् ज्ञान ( गति ) यथेष्ट गमन f करन ( इन्द्रिय ) इन्द्रियों को विषयों में चलाना उनसे विषयो का प्रण करना ! ( आन्तर्विकार ) झुधा, तुषा, ज्वर, पीड़ा आदि विकारों का होना, सुखदु:ख, इच्छा, द्वेष और प्रयत्न ये सब आत्मा के लि अथात् कर्म और गुण है । युगपज्ज्ञानानुत्पत्तिर्मनस लिहू ॥ न्याय० । अ० १। आ० १। सू° १६ ॥ जिससे एक काल में दो पदों का ग्रहण ज्ञान नहीं होता उसको सत कहते ? हैं । यह द्रव्य का स्वरूप और लक्षण कहा अघ गुणा को कहते हैं.-- रूपरसगन्धस्पर्शाः संख्यापरिमाणानि पृथक्वं संयोग- विभाग परवाSपरवे बुद्धय सुखदुख इच्छद्वपौ अ यत्नाश्च गुणाः ॥ वै० । अ० १। आ० १ । सू० ६ ॥ रूपरस, गन्ध, स्पर्श, संख्यापरिमाणपृथकृत्व, सयांग, विभाग, ग्य, अपरस्व, बुद्धि, सुख, हुख, इच्छा, जंप, प्रयत्र, गुरुन्य, द्रवव, न्ट, नरहर, ', अधर्म और शब्द ये २४ गुण कहते हैं । ६