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तम्बाकू पीने को मिल जाती, तो शायद कुछ ताकत आ जाती। उसने सोचा, 'यहाँ चिलम और तमाखू कहाँ मिलेगी। बाह्मनों का पूरा है। बाह्मन लोग हम नीच जातों की तरह तमाखू थोड़े ही पीते हैं।' सहसा उसे याद आया कि गाँव में एक गोंड़ भी रहता है। 'उसके यहाँ जरूर चिलम-तमाखू होगी।' तुरत उसके घर दौड़ा। खैर मेहनत सुफल हुई। उसने तमाखू भी दी और चिलम भी दी, पर आग वहाँ न थी। दुखी ने कहा - 'आग की चिन्ता न करो भाई। मैं जाता हूँ, पंडितजी के घर से आग माँग लूँगा। वहाँ तो अभी रसोई बन रही थी।'
यह कहता हुआ वह दोनों चीज़ें लेकर चला गया और पंडितजी के घर में बरौठे[१] के द्वार पर खड़ा होकर बोला - ‘मालिक, रचिके[२] आग मिल जाय, तो चिलम पी लें।
पंडित जी भोजन कर रहे थे। पंडिताइन ने
सद्गति/ मुंशी प्रेमचन्द10