बाधा, कोई रुकावट न पडी। हां, अनुभव न होने के कारण पडितजी का प्रबन्ध गोदावरी के प्रबन्ध जैसा अच्छा न था। कुछ खर्च ज्यादा पड़ जाता था। पर काम भलीभाति चला जाता था । हां,गोदावरीको गोमती के सभी काम दोषपूर्ण दिखाई देते थे। ईर्ष्या में अग्नि है। परन्तु अग्नि का गुण उसमें नहीं। वह हृदय को फैलाने के बदले और भी संकीर्ण कर देती है। अब घरमें कुछ हानि हो जाने से गोदावरीको दुख के बदले आनन्द होता। बरसातके दिन थे। कई दिनतक सूर्यनारायण के दर्शन न हुए। सन्दूकमें रक्खे हुए कपडोंमें फफूंदी लग गई। तेलके अचार बिगड़ गये। गोदावरी को यह सब देखकर रत्तीभर भी दुख न हुआ। हा, दो चार जली-कटी सुनाने का अवसर उसे अवश्य मिल गया। मालकिन ही बनना आता है कि मालकिन का काम करना भी।
पंडित देवदत्त की प्रकृति में भी अब नया रंग नजर आने लगा। जबतक गोदावरी अपनी कार्यपरायणता से घर का सारा बोझ संभाले थी तबतक उनको कभी किसी चीजकी कमी नहीं खली। यहांतक कि शाक-भाजी के लिये भी उन्हें बाजार नहीं जाना पड़ा। पर अब गोदावरी उन्हें दिनमें कई बार बाजार ऐन वक्तपर जाना पडता। पर गोदावरी उन्हें दिन में कई बार बाजार दौड़ते देखती। गृहस्थीका प्रबन्ध ठीक न रहनेसे बहुधा जरूरी चीजों के लिए उन्हें बाजार ऐन वक्तपर जाना पड़ता। गोदावरी यह कौतुक देखती और सुना-सुनाकर कहती, यही महाराज हैं कि एक तिनका उठानेके लिये भी न उठते थे। अब देखती हूँ,दिनमें दस दफे बाजार में खड़े रहते हैं। अब में इन्हें कभी यह कहते नहीं सुनती कि मेरे लिखने-पढ़ने में हर्ज होगा।