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समर-यात्रा
 


से तर रेशमी कपड़े पहनकर भी न होता। लड़कपन, जवानी और मौत ! तीनों मंजिलें एक ही हिचकी में तमाम हो गई। मैंने बेटे को बाप की गोद में लेटा दिया। इतने ही में कई स्वयंसेवक अम्माजी को भी लाये। मालूम होता था, लेटी हुई मुसकिरा रही हैं। मुझे तो रोकती रहती थीं और खुद इस तरह जाकर आग में कूद पड़ीं मानो वह स्वर्ग का मार्ग हो। बेटे ही के लिए जीती थीं, बेटे को अकेला कैसे छोड़ती ?

जब नदी के किनारे तीनों लाशें एक ही चिता में रखी गई, तब मेरा सकता टूटा, होश आया। एक बार जी में पाया चिता में जा बैठूँ। सारा कुन्बा एक साथ ईश्वर के दरबार में जा पहुँचे; लेकिन फिर सोचा-तूने अभी ऐसा कौन काम किया है, जिसका इतना ऊँचा पुरस्कार मिले ? बहन ! चिता की लपटों में मुझे ऐसा मालूम हो रहा था कि अम्माजी सचमुच भान को गोद में लिये बैठी मुसकिरा रही हैं और स्वामी जी खड़े मुझसे कह रहे हैं, तुम जाओ और निश्चिन्त होकर काम करो। मुख पर कितना तेज था ! रक्त और अग्नि ही में तो देवता बनते हैं।

मैंने सिर उठाकर देखा। नदी के किनारे न जाने कितनी चिताएँ जल रही थीं। दूर से यह चितावली ऐसी मालूम होती थी, मानो देवता ने भारत का भाग्य गढ़ने के लिए भट्ठियो जलाई हों।

जब चिताएँ राख हो गई, तो हम लोग लौटे ; लेकिन उस घर में जाने की हिम्मत न पड़ी। मेरे लिए अब वह घर न था। मेरा तो अब यह है, जहाँ बैठी हूँ, या फिर वही चिता। मैंने घर का द्वार भी नहीं खोला। महिला आश्रम में चली गई। कल की गोलियों में कांग्रेस कमेटी का सफ़ाया हो गया था। यह संस्था बागी बना डाली गई थी। उसके दफ्तर पर पुलिस ने छापा मारा और उसपर अपना ताला डाल दिया। महिला-आश्रम पर भी हमला हुआ। उस पर भी ताला डाल दिया गया। हमने एक वृक्ष की छांह में अपना नया दफ्तर बनाया और स्वच्छन्दता के साथ काम करते रहे। यहाँ दीवारें हमें कैद न कर सकती थीं। हम भी वायु के समान मुक्त थे।

संध्या समय हमने एक जुलूस निकालने का फैसला किया । कल के रक्तपात की स्मृति, हर्ष और मुबारकबाद में जुलूस निकलना आवश्यक था।