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पृष्ठ:समर यात्रा.djvu/४५

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लांछन
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जुगनू ने द्वेष से भरे हुए स्वर में कहा-आप देखें। मैं ऐसी सैकड़ों छोकरियाँ देख चुकी हूँ। आँखों का पानी जैसे मर गया हो।

मि० टण्डन - धीरे से बोलो। तुम्हें कच्चा ही खा जायँगी। उनसे डरती रहना। कह गई हैं, मैं इसे ठीक करके छोड़ें गी । मैंने सोचा, तुम्हें चेता हूँ। ऐसा न हो, उनके सामने कुछ ऐसी-वैसी बातें कह बैठो।

जुगनू ने मानो तलवार खींचकर कहा-मुझे चेताने का काम नहीं, उन्हें चेता दीजिएगा। यहां का आना न. बन्द कर दूं, तो अपने बाप की नहीं। वह घूमकर दुनियाँ देख भाई हैं, तो यहाँ घर बैठे दुनिया देख चुकी हूँ।

मिसेज टण्डन ने पीठ ठोंकी-मैंने समझा दिया भाई, आगे तुम जानो, तुम्हारा काम जाने।

जुगन--आप चुपचाप देखती जाइए। कैसा तिगनी का नाच नचाती हूँ। इसने अब तक ब्याह क्यों नहीं किया ? उमिर तो तीस के लगभग होगी।

मिसेज टण्डन ने रद्दा जमाया-कहती हैं, मैं शादी करना ही नहीं चाहती। किसी पुरुष के हाथ क्यों अपनी आज़ादी बेचूँ।

जुगन ने आँखें नचाकर कहा-कोई पूछता ही न होगा। ऐसी बहुत- सी क्वारियाँ देख चुकी हूँ। सत्तर चूहे खाकर, बिल्ली चली हज्ज को और कई लेडिया आ गई, बात का सिलसिला बन्द हो गया।

( ३ )

दूसरे दिन सबेरे जुगनू मिस खुरशेद के बंगले पर पहुँची। मिस खुरशेद हवा खाने गई हुई थीं। खानसामा ने पूछा-कहाँ से श्राती हो ?

जुगन- यहीं रहती हूँ बेटा ! मेम साहब कहाँ से आई हैं, तुम तो इनके पुराने नौकर होगे?

खान-नागपूर से आई हैं। मेरा घर भी वहीं है। दस साल इनके साथ हूँ।

जुगनू-किसी ऊँचे ख़ानदान की होगी। वह तो रंग-ढग से ही मालूम होता है।

ख़ान०-ख़ानदान तो कुछ ऐसा ऊँचा नहीं है ; हाँ, तकदीर की अच्छी हैं। इनकी माँँ अभी तक मिशन में ३०) पाती हैं। यह पढ़ने में तेज़ थीं,