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पृष्ठ:समर यात्रा.djvu/४७

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लांछन
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इतने में मिस खुरशेद आ पहुँची। गुलाबी जाड़ा पड़ने लगा था। मिस साहब साड़ी के ऊपर श्रोवर कोट पहने हुए थीं। एक हाथ में छतरी थी, दूसरे में छोटे कुत्ते की जंजीर। प्रभात की शीतल वायु में व्यायाम ने कपोलों को ताज़ा और सुख कर दिया था। जुगनू ने झुककर सलाम किया ; पर उन्होंने उसे देखकर भी न देखा। अन्दर जाते ही खानसामा को बुलाकर पूछा-यह औरत क्या करने आई है ?

खानसामा ने जूते का फीता खोलते हुए कहा-भिखारिन है हुजूर ! पर औरत समझदार है। मैंने कहा यहां नौकरी करेगी, तो राज़ी नहीं हुई। पूछने लगी, इनके साहब क्या करते हैं। जब मैंने बता दिया, तो इसे बड़ा ताज़्जुब हुआ और होना ही चाहिए। हिन्दुत्रों में तो दुध-मुँहे बालकों तक का विवाह हो जाता है।

मिस खुरशेद ने जांच की- और क्या कहती थी ?

'और तो कोई बात नहीं हुजूर ।'

'अच्छा उसे मेरे पास भेज दो।'

( ४ )

जुगन ने ज्यों ही कमरे में कदम रखा, मिस खुरशेद ने कुरसी से उठकर स्वागत किया-आइए माजी ! मैं जरा सैर करने चली गई थी। आपके आश्रम में तो सब कुशल है ! जुगन एक कुरसी का तकिया पकड़कर खड़ी- खड़ी बोली-सब कुशल है मिस साहब ! मैंने कहा आपको आसिरवाद दे पाऊँ। मैं आपकी चेरी हूँ। जब कोई काम पड़े, मुझे याद कीजिएगा। यहाँ अकेले तो हुजूर को अच्छा न लगता होगा।

मिस० -- मुझे अपने स्कूल की लड़कियों के साथ बड़ा आनन्द मिलता है, वे सब मेरी ही लड़किया हैं।

जुगन ने मातृ-भाव से सिर हिलाकर कहा-यह ठीक है मिस साहब पर अपना अपना ही है। दूसरा अपना हो जाय, तो अपनों के लिए कोई क्यों रोये।

सहसा एक सुन्दर सजीला युवक रेशमी सूट धारण किये, जूते चरमर करता हुआ अन्दर आया। मिस खुरशेद ने इस तरह दौड़कर प्रेम से उसका