पृष्ठ:समर यात्रा.djvu/५९

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ठाकुर का कुआँ
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रत्ती भर उम्मीद नहीं। अन्त में देवताओं को याद करके उसने कलेजा‘मज़बूत किया और घड़ा कुएँ में डाल दिया।

घड़े ने पानी में गोता लगाया, बहुत ही आहिस्ता। जरा भी आवाज़ न हुई। गंगी ने दो-चार हाथ जल्दी-जल्दी मारे । घड़ा कुएँ के मुंह तक श्रा पहुँचा। कोई बड़ा शहज़ोर पहलवान भी इतनी तेज़ी से उसे न खींच सकता था।

गंगी झुकी कि घड़े को पकड़कर जगत पर रखे कि एकाएक ठाकुर साहब का दरवाजा खुल गया। शेर का मुँह इससे अधिक भयानक न होगा।

गंगी के हाथ से रस्सी छूट गई। रस्सी के साथ घड़ा धड़ाम से पानी में गिरा और कई क्षण तक पानी में गति की आवाजें सुनाई देती रहीं।

ठाकुर 'कौन है ? कौन है ? पुकारते हुए कुएँ की तरफ़ आ रहे थे और गंगी जगत से कूदकर भागी जा रही थी।

घर पहुँचकर उसने देखा कि जोखू लोटा मुँह से लगाये वही मैला,गन्दा पानी पी रहा है।

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