पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१२१

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(६४ ) और सुधारवादी प्रकार की है. इस प्रकार की छोटी माँगों के आधार पर विशाल जन-समुदाय को मामाज्यवाद विरोधी संघर्ष के लिए परिचालित नहीं किया जा सकता । एक रचनात्मक प्रस्ताव को पर्यालोचना अभी हाल ही में बबई के एक पत्र में कांग्रेस-समाजवादी पार्टी के कार्ग और उसकी अावश्यकता की चर्चा की गई है । लेखक ने इस विषय पर महानुभूनि मे विचार किया है और पार्टी का स्वागत किया है । परन्तु उमका विचार है कि पार्टी तभी प्रभावशाली हो सकती है जब वह अपना अस्तित्व समाप्त करके केवल कांग्रेस के वाम-पक्ष की तरह कार्य करे । यह कहा गया है कि कांग्रेस से समाजवाद को अरने ध्येय की तरह अपनाने की आशा नहीं की जा सकती और इसलिए कांग्रेस के भीतर समाजवाद की बात-चीत से सामाज्यवाद-विरोधी संघर्षा का अहित ही होगा। मैं व्यक्तिगत रूप से इससे सहमत हूँ कि कांग्रेस ममाजवाद का लेटफार्म नहीं है और उसका मुख्य कार्य साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष को बढ़ाना है । परन्तु हमें यह न भूलना चाहिए कि वर्तमान परिस्थितियों में मा संघर्ष नभी नीव हो सकता है जब हम उसे जनसमुदाय की आर्थिक माँगों के माथ जोड दें और यह तभी मम्भव है जब कांग्रेस के भीतर एक ऐसी पार्टी हो जो निरन्तर आर्थिक कार्यक्रम अपनाने के लिए हलचल मचाती रहे । मेरी यह भी धारणा है कि काम-कार्यकर्त्तानों में लगातार ममाजवादी प्रचार करते रहने की अत्यन्त आवश्यकता है क्योंकि जितनी अधिक सफलता हम इस दिशा में प्राप्त करेंगे उतनी ही कांग्रेस द्वारा एक जरदार मामाज्यवाद- विरोधी कार्यक्रम अपनाए जाने की सम्भावानायें अधिक होंगी। इसलिए और कुछ नहीं तो इसी कारण से पार्टी का बना रहना आवश्यक है ! एक बिखरी हुई टोली