पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१३२

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शनैः इस नीति को मान लेने के लिए तैयार किया जा रहा है। जो चुप्पी चारों ओर छाई हुई है उससे इस नीति के समर्थकों को और भी बल मिल रहा है। प्रतिक्रिया के समय में सतर्क और सजग रहना और भी आवश्यक है जिससे चलते पुरते लोग आगे निकलकर अपने विचारों के अनुसार निर्णय न करालें। ऐसे अवसरों पर देरी करना सदैव घातक होता है और जो फुर्ती और दृढ़ता से कार्य करता है वही सफल होता है। इसलिए यदि हम एकदम जनमत को विध्वंसात्मक नीति की ओर नही चलायेंगे तो सब चौपट हो जायगा। कार्यकर्ताओं को शीघ्र ही निर्णयात्मक दृष्टिकोण लेकर अपनी बात को चलाना चाहिये और जो पदाधिकारी हैं उनको बता देना चाहिये कि बहिस्कार की नीति में कोई हेर फेर सहन नहीं किया जायगा । इस एक प्रश्न के निर्णय के ऊपर कांग्रेस का भविष्य बहुत कुछ निर्भर करेगा ! सम्पूर्ण आंदोलन के क्रान्तिकारी मार्ग से च्युत हो जाने का डर है और यदि कांग्रेस विधानवाद और सुधारवाद के पुराने वीरान पथ पर चली तो वह एक ऐसे दलदल में जायगी जहाँ से निकलना उसके लिये सम्भव न होगा। यह प्रश्न बड़ा ही महत्वपूर्ण है और इसका निर्णय पालिया- मंन्टीय बोर्ड के हाथों में नहीं छोड़ देना चाहिये । कांग्रेस को इस बारे में स्पष्ट निर्देश देना चाहिये जिससे कोई गोलमाल न हो सके। जो पार्टी पूर्ण स्वतन्त्रता का लक्ष्य लेकर चली है उससे विध्वं- सात्मक नीति मनवाने के लिए विशेष वकालत करने की श्रावश्यकता नहीं है। वह कभी भी साम्राज्यवाद से समझौता नहीं कर सकती लक्ष्य की प्राप्ति होने तक उसे तो निरन्तर संघर्ष किए जाना है। उसे