पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१४

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विद्यार्थी समुदाय में बड़ा जोश था और वगाल के प्रति तीव्र सहानुभूति थी। नरेन्द्र देवजी जो केवल १७ वर्ष के थे, सन् १९०६ में कलकत्ता कांग्रेस में दर्शक के रूप में सम्मिलित हुए । इस अधिवेशन में प्रधान-पद से दादाभाई नौरोजीने भारत का ध्येय स्वराज्य बताया। यही स्वराज्य' शब्द अागे चलकर राष्ट्र की चेतना में घर कर गया और उसकी स्वतन्त्र होने की इच्छा की प्रतीक एक जादू भरा मन्त्र बन गया । नरमदलवालों और उग्रराष्ट्रवादियों में संघर्ष जोरों पर था। नरम दल के नेता थे फीरोजशाह मेहता, गोखले, और मुरेन्दनाथ बनर्जी और गरमदल के थे तिलक और अरविंद घोष । कांग्रेस के प्रधान के महान व्यक्तित्व के कारण दोनों पक्ष कांग्रेस में बने रहे । परन्तु उनका कार्यक्रम अधिकाधिक वामपक्ष से प्रभावित होता गया। कलकत्ते में नरेन्द्र देवजी को गरमदल के कुछ बड़े नेताओं के भाषण सुनने को मिले जिनमें अरविन्द घोष और विपिनचन्द्रपाल उल्लेखनीय है | अरविन्द जी के प्रसिद्ध अभिभारण "नई पार्टी के सिद्धान्त" में भी वे उपस्थित थे। अगले वर्ष कांग्रेस का अधिवेशन सूरत में हुआ और दोनों दलों के तीव्र मतभेदों के कारण संगठन टूट गया। गरमदल वाले कांग्रेस से निकाल दिये गये और गरमदल वालों ने अपनी एकाकी राह अपनाई । नरेन्द्र देव जी के विद्यार्थीकाल में इलाहाबाद गट्रवादी पार्टी ( गरमदल वानों) का गढ़ था यद्यपि नरमदलवालों के तीन गण्य. मान्य नेता-पं० मदनमोहन मालवीय, डाक्टर तेजबहादुर सब और मुंशी ईश्वरशरण वहीं निवास करते थे। जब सन् १९०७ में तिलक वहां पधारे तो इन ऊँचे नेतायों में से किसी ने उन्हें लिवाने कष्ट नहीं उठाया। हाँ विद्यार्थीगण सैकड़ों की संख्या में स्टेशन पर उपस्थित थे। सारे इलाहाबाद में तिलक के स्वागत के लिए अकेले बाबू चारुचन्द्र चटर्जी ही अपनी गाड़ी देने के लिए