पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१४२

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आजादी की लड़ाई [२] संविधान सभा (१९३७) भारतीय संविधान मभा की बैठक शीघ्र ही होने वाली है अत. यह जानना विशेष रूचिकर है कि भारतीय राजनीति में विधान मभा का विचार कैसे पनपा है । सन् १९३७ में संयुक्त प्रान्तीय धारासभा ने अपवारामभाओं की भाँति निम्न प्रस्ताव पर वादविवाद किया :-- इस सभा की सम्मति मे १६.३५ का भारतीय एक्ट राष्ट्र की इच्छा का किसी प्रकार भी प्रतिनिधित्व नहीं करता और क्योंकि वह भारतीयों की दासता को अक्षरण बनाये रखने के लिए निर्मित हुअा है इमलिए. पूर्णतः असन्तोषप्रद है । यह धारासभा मांग करती कि उसे हटाकर उसके स्थान पर वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित मविधान सभा के द्वारा निर्मित स्वतन्त्र भारत का विधान लागू किया जाय जिससे भारतवासियों को अपनी इच्छाओं और अावश्यकताओं के अनुसार समुन्नति करने का पूर्ण अबसर मिले । इस प्रस्ताव को पेश करने की सूचना संयुक्तप्रान्त के प्रधान-मंत्री पं० गोविन्द बल्लभ पन्त के द्वारा दी गई थी। उनकी अनुपस्थिति में स्थानीय स्वशासन , jiocal scif-government) की मंत्रिणी श्रीमती विजयलक्ष्मी पडित ने इसे उपस्थित किया। इस प्रस्ताव पर दो विशेष रूप से उल्लेखनीय संशोधन मुस्लिम लोग और स्वतंत्र पार्टी (जमींदारों) की ओर से रखे गये।