पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१४९

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( १२२ ) क्षण के लिए भी यह नहीं सोचते कि यह हमारी भूमि में पनपा हुना पौधा नहीं है बल्कि एक विदेशी उपज है । अब पश्चिम में तो उस प्रणाली में आमूल परिवर्तन की मॉग की जा रही है, परन्तु हम उसमें परिवर्तन करते हार और नवीन मार्ग अपनाते हुए हिचकते हैं । श्रीमन् , यह कहा गया है कि इस प्रान्त के जमींदार सब सद्गुणों की खान हैं । उन्होंने देश और जनता के लिए. बहुत त्याग किया है। वे जनता के माँ बाप होने का दावा करते हैं। परन्तु अब तो वे परित्यक्त है, और जन-समुदाय का स्वभावतः नेतृत्व करने का उनका दावा झूठा सिद्ध हो चुका है। कृषकवर्ग ने वस्तुतः घोषित कर दिया है कि उसका उनमें कोई विश्वास नहीं है। जनता उठ खड़ी हुई है और इन तालुकेदारों और बड़े-बड़े जमींदारों का परम्परागत प्रभुत्व प्रायः ममाप्त हो चुका है। जव जमींदार हमसे अपने विशेषाधिकारों को ज्यों के न्यां बिना किसी हेर फेर के रहने देने की मांग करते हैं तब वे सम्भवतः यह भूल जाते हैं कि उनका उदगम कैसे हुअा। वे तो ब्रिटिश शासन के बनारे हुए पुतले हैं । अवध जागीर ऐक्ट में जिसके अनुसार अवा के तालुकेदारों को सिपाही विद्रोह के पश्चात् जागीरें दी गई थी गवर्नमेंट की मेवा-भक्ति करने की शर्त उन पर लगाई गई थी। मैं तो सनदों को गुलामी के पट्टे समझता हूं। वे भले ही उन्हें गौरव की वस्तु समझे । स्वयं एक्ट में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि कृषकों को ज्यादा से बचाने का सरकार को अधिकार होगा । यदि हम जमींदारों के हितों के रक्षक बने तो क्या लाखों की जनता के हितों के रक्षक न बनें ? अतः हम कोई ऐसा श्राश्वासन नहीं दे सकते कि जमींदारों के विशेषाधिकारों को अछूता छोड़ दिया जायगा । । हम आने वाले लोगों के हाथ