पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१५६

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( १२६ ) मामाज्यवादी फैडरेशन का विरोध सदैव का सा दृढ़ बना हुआ है | ब्रिटिश बादशाह का भारत भ्रमण जिसके बड़े ढोल पिट रहे थे, उसे बार-बार स्थगित करना पड़ा । देश में कांग्रेस के वामपन का प्रभाव दिनोंदिन बढ़ रहा है। अतः गवर्नमेण्ट कांग्रेस को पदों पर अारूढ़ रखने के लिए उत्सुक नही ।। ब्रिटेन के पूँजीवादी शासकवर्ग के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति पहिली जैसी सङ्कटपूर्ण नहीं है। इटली के मना लेने से भूमध्य- मागर का भय कम होगया है। इसलिए भारत का वैधानिक नकट निटिश गवर्नमेण्ट के लिए विशेष चिन्ता का कारण नहीं हुआ। परन्तु जिस मामले को लेकर सङ्कट खड़ा किया गया था, उससे सामाज्यवाद की प्रतिठा की रक्षा होनी कठिन थी, और इसलिए उसे अन्त में झुकना पड़ा। उस मामले में अन्य राजनीतिक पार्टियों भी कांग्रेस के साथ थीं। यहाँ तक कि तालुकेदार भी अन्तु- रिम मंत्रिमंडल बनाने की हिम्सत न कर सके क्योंकि वे जानते थे कि उनके लिए कर वसूल करना असम्भव होगा और सम्भवतः उन्हें किसी गम्भीर स्थिति का सामना करना पड़ेगा। गंसार का मत भी उस प्रश्न पर कांग्रेस के साथ था। वायस- राय ने सन् १९३५ के भारतीय एक्ट की धारा १२६ (५) का जो आश्रय लिया उसका कोई अवसर न था, क्योंकि राजनीतिक बन्दियों की रिहाई से देश की शान्ति और सुव्यवस्था के लिए गम्भीर सकट उपस्थित होने का तनिक भी भय न था । अन्त में गवर्नमेन्ट को झुकना पड़ा और कांग्रेस की बात माननी पड़ी। परन्तु सङ्कट के इस प्रकार शान्तिपूर्वक टल जाने