पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१६

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गरमदल वालों के समर्थक इलाहाबाद से दो पत्र भी निकाल रहे थे। इनमें से एक तो उर्दू साप्ताहिक "स्वराज्य" था. जिसके अनेक सम्पादक जेल गये, और दूसरा हिंदी "कर्मयोगी" था। इसके सम्पादक थे पं० सुंदरलाल जिनको अपनी राजनीतिक हलचलों के कारण विश्व-विद्यालय से निकाल दिया गया था और जो इसलिये अपनी डिग्री भी नहीं ले पाये थे। ऐसे वातावरण में नरेन्द्रदेव जी रहते और चलते फिरते थे। वे एक अच्छे विद्यार्थी थे और जो क्रांतिकारी पुस्तकें उनके हाथ पड़ जाती थीं, उन्हे वे बड़े चाव से पढ़ते थे। क्रोपोटकिन की “एक कान्तिकारी के संस्मरण" और "पारस्परिक सहायता" जैसी पुस्तके कुमारस्वामी के राष्ट्रीय आदर्शवाद विषयक लेख, अरविंद घोष और लाला हरदयाल की रचनाये और तुर्गनेव की कहानिया उन्हे विशेष प्रिय थी । गैरीवाल्डी की जीवनी और मैजिनी का छै जिल्दों में छपा साहित्य जिसमें उसकी “मनुष्य के कर्त्तव्य" नामक रचना भी थी, उन्होंने उत्माह और लगन से पढ़े। और भी उन्होंने अनेक पुस्तके पढ़ा जिनमै फेंच क्रांवि-विषयक ग्रंथ ब्लंशली की "राज्य की थ्यूरी" ओर बहुत सा रूस का अराजकतावादी साहित्य था जहां के नेताओं और लोगों पर सन् १९०५ की क्रांति से भयंकर दमन ने एक नवीन दिव्य ज्योति छिटका दी थी। यह बात ध्यान देने की है कि नरेन्द्र देव जी के समकालीन विद्यार्थियों में पंडित गोविंदवल्लभ पंत, डाक्टर कैलाशनाथ काटज, वाबू शिवप्रसाद गुप्त, और महाकोशल प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के प्रधान ठाकुर छेदीलाल थे। इनमें से पं. गोविंदवल्लभ पंत उस समय वी० ए. में थे, जब नरेन्द्रदेव जी फर्स्ट ईयर में थे; डाक्टर काटजू एम० ए० में पढ़ते थे और वाबू शिवप्रसाद गुप्त और