पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१७

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ठाकुर छेदीलाल नरेन्द्र देव जी के सहपाटी और अभिन्न मित्र थे । राजनीति के वारे में नरेन्द्रदेव जी कितने गम्भीर थे, यह इस बात से स्पष्ट हो जायगा कि राष्ट्रवादियों के कांग्रेस से निकाल दिए जाने पर उन्होंने सन् १९१० में कांग्रेस अधिवेशन की योर झॉककर भी नहीं देखा यद्यपि वह अधिवेशन इलाहाबाद में ही हो रहा था ! सर विलियम वैडरबर्न ने, जो प्रधान थे, काग्रेस के दोनों पक्षों को मिलाने का एक और प्रयत्न किया, परन्तु वे सफल न हो सके। सन् १६१६ में जाकर कांग्रेस में एकता पुनर्स्थापित हुई । तिलक, गोखले, जिन्ना, और औरों के संयुक्त प्रयत्नों से कांग्रेस और मुस्लिम लीग में लखनऊ पैक्ट नामक समझौता हुअा। नरेन्द्र देव जी जो फैजाबाद में वकालत कर रहे थे, और जो होमरूल लीग के मैक्रेटरी थे, लखनऊ कांग्रेस में पहले-पहल प्रतिनिधि की हैसियत से अाये । तब से लेकर अबतक वे कांग्रेस के सभी अधिवेशनों में सम्मिलिन हाए, हैं । केवल कोकानाड़ा (१९२३) और मदरास (१९२६) के अधिवेशन में वे दमे के प्रकोप के कारण सम्मिलित नहीं हो पाए । असहयोग आन्दोलन से भारत में वस्तुतः नवजीवन अा गया । राष्ट्रीय शिक्षा को बढ़ावा मिला अोर श्री शिवप्रसाद गुप्त ने काशी विद्यापीट की स्थापना के लिए दस लाख का दान दिया। श्रद्धय वाबू भगवानदाम, दार्शनिक और ऋपि उसके अध्यक्ष बने, प्राचार्य कृपलानी उपाध्यक्ष,और वाबू सम्पूर्णानन्द दर्शन के प्राचार्य । नरेन्द्र- देवजी सन् १९२० की नागपुर कांग्रेस के पश्चात वकालत छोड़ चुके थे । अतः उनके अभिन्न भित्र और सहपाटी वाबू शिवप्रसाद गुप्त ने उनसे विद्यापीठ में या जाने का आग्रह किया । अन्त में जवाहरलाल जी के अनुरोध से उन्होंने अपनी स्वीकृति दे दी । सन् १९३० के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में कांग्रेस ने सम्पूर्ण