पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१६९

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किया। हमने समाजवादियों मे फूट बढ़ाने की अनिच्छा के कारण, उनके लाञ्छनी और दुर्भावनापूर्ण प्रनार का प्रत्युत्तर देना उचित न समझा । परन्तु हमारे शान्त और क्षमाशील रहने पर भी माम्यवादियों ने अपने विशिष्ट अड़ियलपन का परिचय देते हुए, अपना विरोध और विशेष जारी रखा और कांग्रेस-समाजवादी पार्टी सब समाजवादियों में एकता स्थापित करने में सफल न हो सकी। वह स्मरण कर लेना आवश्यक है कि साम्यवादी पार्टी से पृथक एक समाजवादी पार्टी की स्थापना क्यों हुई और किसलिए उसका नाम कांग्रेस-समाजवादी पार्टी रखा गया है। कांग्रे मी समाजवाद वस्तुतः रूसी "मामाजिक जनतन्त्र" (Social Democy) का भारतीय रूप है । जैसा लेनिन ने बतलाया था, "मामानिक जनतन्त्र" दो क्रान्तियों की पारस्परिक निर्भरता को व्यक्त करता है। उनमें से एक क्रान्ति सामाजिक अर्थात् आर्थिक स्वतंत्रता की है और दूसरी हैं राजनैतिक अर्थात् जनतन्त्रीय स्वाधीनता की। लेनिन ने आगे और भी कहा है कि समाजवादी ध्येय जनतन्त्र के लिए संघर्ष लड़कर ही प्राप्त किया जा सकता है। पराधीन औपनिवेशिक देशों में राष्ट्रीय संघर्ष ही जनतन्त्र का मंघर्ष है। हमारी पार्टी अपना नाम "सामाजिक जनतन्त्रीय पार्टी" रखती यदि यूरोप के मामाजिक प्रजातन्त्रवादियों ने प्रथम विश्व युद्ध में एक दूसरे के विरुद्ध अपने विभिन्न राष्ट्र-बन्धु धनिक वर्गों का साथ देकर 'सामाजिक जनतन्त्र' का नाम बदनाम न कर दिया होता। इसी कारण से लेनिन ने सामाजिक जनतन्त्रीय पार्टियों का पुनर्गठन कर चुकने पर उनका 'साम्यवादी पार्टी नाम रखना पसन्द किया