पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१८

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ब्रिटिश माल विशेषकर कपड़े का पूर्ण वहिष्कार करने की प्राज्ञा प्रचारित की थी। संयुक्त प्रांत में बस्ती और गोरखपुर नेपाल को कपड़ा भेजने के मुख्य केन्द्र थे । वाबू पुरुषोत्तमदास टण्डन, शिवप्रसाद गुप्त, और प्राचार्य जी इसे रोकने और विदेशी कपड़े के स्टाक पर मुहर लगाने के लिए वस्ती गये | उन सबको गिरफतार करके जेल भेज दिया गया । नरेन्द्रदेव जी जेल में बहुत वीमार रहे, और जेल से छूटने पर भी वैसे ही बने रहे । सन् १६३१ में गान्धी इरविन समझौते के दिनों में उन्हें लगभग प्रतिमास दमें के भयंकर दौर पाते थे, और उन्हें पुरी जाने की सलाह दी गई। परन्तु अस्वस्थता और डाक्टरों की सलाह के बावजूद उन्होंने सन् १६३२ के संघर्ष में प्रमुख भाग लिया, योर लम्बे अरसे तक जेल काटा। यह समाजवादी अान्दोलन का जन्म था जिसने नरेन्द्रदेव जी को अन्त में विवादात्मक राजनीति के क्षेत्र में खींच लिया। जयप्रकाश जी अमरीका से सन् १९२६ में लौट आए थे। कुछ काल के पश्चात जयप्रकाश जी के प्रिय प्राचार्य भारत भ्रमण के लिए अाए और उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों का विशेष दौरा किया। उन्होंने बिहार विद्यापीठ को देखा जिसके अध्यक्ष बाबू राजेन्द्रप्रसाद थे। प्राचार्य जी उस समय काशी विद्यापीठ के प्रिंसीपल थे। उनको बिहार विद्यापीठ के प्रिसीपल ने लिखा कि वे उस लब्धप्रति अमरीकन प्रोफेसर का स्वागत करें । जयप्रकाश जी उनके साथ थे। इस प्रकार नरेन्द्र देव जी और जयप्रकाश जी पहिलेपहल मिले और एक दूसरे की अोर आकर्षित हुए । जब जयप्रकाश जी ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के श्रम अनुसन्धान विभाग का कार्यभार संभाला, तो वे दोनों अधिक सम्पर्क में आने लगे और क्रमशः घनिष्ठ हो गए। बाद में अन्य अनेक मित्रों के साथ मिलकर उन्होंने कांग्रेस-समाजवादी पार्टी की रचना की।