पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१७१

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( १४४ ) कांग्रेस- उमाजवादी पार्टी ने प्रारम्भ ही में दोनों पार्टियों के भिन्न उदगम और मुख्य कार्यक्षेत्रों की भिन्नता को ध्यान में रखते हुए माम्यवादी पार्टी से घनिष्ठ सम्बन्ध रखने चाहे । उसने साम्यवादी पार्टी के साथ उन श्रमिक क्षेत्रों में सहयोगी कार्य करना चाहा जहां साम्यवादी पार्टी का प्रचुर प्रभाव था ; माथ ही उसने उससे उन कृपक और अन्य क्षेत्रों में सहयोग की अाशा की जहां कांग्रेस का प्रभाव सर्वोपरि था। मैंने अपने पटना अभिभाषण से लेकर बारंबार इस प्रकार के सहयोग के लिए अनुरोध किया है। परन्तु हमारे माम्यवादी मित्र हमारी पार्टी के मार्क्सवादी स्वरूप को मानने के लिये तन्यार नहीं थे। अतः एकता के लिये किये गये प्रयत्न असफल रहे, परन्तु उनसे यह पता लगता है कि कांग्रेस-गमाजवादी पार्टी ने अपने प्रारम्भ-काल से ही निरन्तर समाजवादी आन्दोलन में एकता लाने का प्रयास किया है। चह स्पष्ट है कि कोई व्यनि, एक साथ दो गजनैतिक पार्टियों का सदस्य नहीं हो मकना चाहे व पार्टियाँ कांतिकारी समाजवाद की दो शाखाग्रां का प्रतिनिधित्व ही क्यों न करती हो। एक समय पर एक व्यक्ति एक ही पार्टी के प्रति सच्चा हो सकता है और उमीका अनुशासन भी मान सकता है । अतः समाजवादी एकता या नो इस प्रकार पैदा की जा सकता है कि एक के अतिरिक्त मब समाजवादी पाटियों को समान कर दिया जाय और सत्र समाजवादी उसमें सम्मिलित होकर उसे अपना ऐक्य-स्थल बना ले। उसमें उन विभिन्न समाजवादी प्रवृत्तियों को जो क्रांतिकारी समाजवाद से मेल नहीं ग्वाती, पर्याप्त प्रतिनिधित्व और अवसर प्राप्त होने चाहिये । उसके भीतर पूर्ण प्रजातन्त्र हो और आपसी समालोचना की पूर्ण सुविधा हो। इसका तात्पर्य अनुशासन की शिथिलता से नहीं है। दूसरा