पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१८९

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कार्य-शैली की तुलना में बढ़कर प्रतीत हो और जनता को प्रभावित कर सके, तो वह नेतृत्व परिवर्तन का एक शक्तिशाली अन्त्र बन सकता है । गतकाल का अनुभव हमें बनाता है कि जब कभी कांगम कोई विशाल जन-संघर्ष छेड़ती है तो उसके अग्रगामी बनने की प्रक्रिया अधिक गतिशील हो जाती है । संघर्ष के समय में कार्यकर्ताओं को बड़े बहुमूल्य अनुभव प्राप्त होते हैं । वे संघर्ष-प्रणाली का व्यावहारिक रूप देय लेन हैं और उसकी अपूर्णता और न्यूनता को जान लेते हैं । गतिशील स्थिति में यह प्रक्रिया और भी बंगवती हो जाती है। संघर्ष शैली कुछ भी हो, संघर्ष के अनुभव और परिणाम मदेव अान्दोलन के लिए हितकारी और स्वास्थ्यकर होते हैं । इस विश्वास और इन अनुभवों के आधार पर कांग्रेसी समाज वादिया ने सदैव कांग्रेस पर संघर्ष की तैयारी करने के लिए जोर डाला है । जन समुदाय संवर्ष चाहता है । युद्ध की भूमिका में यह इच्छा और भी प्रबल हो उठी है। लन्बनऊ अधिवेशन में लेकर कांग्रेस ने हर बार जो युद्ध बहिष्कार की नीति घोषित की है, उससे जनता में यह इच्छा उत्पन्न हुई हैं । उस नीति की बारम्बार निर्धारित कराने का दायित्व सम्पूर्ण वामपन पर है। अब जब कि उन निर्णयों को क्रियात्मक रूप देने का अवसर आया है तब हमारे लिए रुख बदलकर युद्ध-समाप्ति तक के लिए संघर्ष टालने की बात कहना अशोभनीय और अयुक्त होगा। कामरेड राय ने नीति परिवर्तन के लिए जो कारण प्रस्तुत किए हैं, उनका अस्तित्व उस समय भी था जब निर्णय किए गए थे । हम यह नहीं कह सकते कि आज जो अवस्थायें चल रही है उनका हमें निश्चयात्मक ज्ञान नहीं था। इतने थोड़े समय में किसी को भी काग्रेसी नेतृत्व में उग्र परिवर्तन हो जाने की अाशा नहीं हो सकती