पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१९९

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ओर' होगी । उस समय में जब पूँजीवाद प्रगतिशील था और सामन्तशाही और निरंकुशतावाद को नष्ट कर रहा था, तब समाजवादी सुखपूर्वक उस धनिकवर्ग के साथ सहानुभूति रख सकते थे जिसने इस कार्य को सम्पादित करने में योग दिया था- यद्यपि उसने विदेशों को पादाक्रान्त करने में भी कसर न रक्त्री थी। धनिकवर्ग के द्वारा किये गये इन लूट और अन्याय के कामों से ऐसे युद्धों का मूलभूत ऐतिहासिक अर्थ नहीं बदला । फैश्च क्रान्ति ने ऐसे समय का श्रीगणेश किया था और सन १७८६ और १८७१ के बीच के काल में ऐसे अनेक युद्ध हुए जो प्रगतिशील प्रकार के थे। ये विदेशी प्रभुत्व के विरुद्ध राष्ट्रीय युद्ध थे। इनकी सामान्य प्रवृत्ति सामन्तवाद और निरंकुश सत्तावाद को शक्तिहीन और नष्ट करने की थी। यह ऐतिहासिक कार्य धनिकवर्ग के द्वारा पूरा हुअा और इसने श्रमिक के समाजवादी संघर्ष के विकास का क्षेत्र खोल दिया। परन्तु हम अाजकल एक सामाज्यवादी युग में रह रहे हैं । जीवाद की प्रगतिशीलता समाप्त होगई है और वह एक प्रतिक्रियात्मक शक्ति बन गया है। वह उत्पादन शक्तियों को जकड़े हुए है। सामाज्यवाद पूँजीवाद के विकास की उच्चतम अवस्था है। उन्मुक्त व्यापार और प्रतिस्पर्धा को एकाधिकार प्रवृत्तियों ने धर दबाया है। उत्पादन शक्तियों का इस हद तक विकास हो गया है कि वे अब पूँजीवादी चौखटे में कस कर नहीं रक्खी जा सकती। मानव समाज को या तो समाजवाद की ओर चलना है अन्यथा पूँजीवादी अर्थ-व्यवस्था और धनिक्रवर्ग के शासन को बनाये रखने के लिए, पूँजीवादी राष्ट्रों में बार-बार युद्ध होते देखना है।