पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२००

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( १७३ ) ऐसा समय बीसवी सदी में या पहुंचा था। १६१४-१८ का युद्ध एक सामाज्यवादी युद्ध था जो सामाज्यवादी उद्देश्यों की सिद्धि के लिए लड़ा गया था । “अन्य (अर्थात हिमात्मक) साधनों द्वारा जारी रखी गई राजनीति है।" मन् १६ १४-१८ के विश्व युद्ध ने केवल औपनिवेशिक लुटेरेपन, विदेशी राष्ट्रों के उत्पीड़न और श्रमिक अान्दोलनों के दमन की सामाज्यवादी नीति को ही जारी रखा। वर्तमान युद्ध भी इसी प्रकार का है। मामाज्यवाद का युग अभी समान नहीं हुअा है यद्यपि पिछले युद्ध के परिणामस्वरूप एक ऐसे राज्य का जन्म हो गया जो समाजवाद का दम भरता है । संसार की अधिकांश अर्थ व्यवस्था पूँजीवाद ही बनी हुई है । जब सितम्बर सन् १६.३६ मे युद्ध छिड़ा तो साधाणतः उसका स्वरूप साम्राज्यवादी माना जाता था। राष्ट्रीय इकाइयों अर्थात माम्यवादी पार्टियों ने तुरन्त ही सीधा युद्ध-विरोधी रुख अपनाया। उन्होंने वस्तुत यह कहा कि यह युद्ध साम्राज्यवादी है । सामाज्यवादी युद्ध में शत्र, तुम्हारे अपने देश के भीतर होता है । श्रमिकवर्ग के दृष्टिकोण से प्रतिद्वन्द्वी शासकवर्गों में से कोई भी भला नहीं होता, अतः प्रत्येक देश में श्रमिकवर्ग का एक मात्र कर्तव्य है अपने शासक-वर्ग पर आघात करना जिससे सम्पूर्ण शासकवर्गों की पराजय और एक अन्तर्राष्ट्रीय समाज- वादी क्रांति के द्वारा युद्ध समाप्त किया जा सके । इस युक्ति का कि ब्रिटिश पूँजीवाद जर्मन फासिज़म से कम बुरा है, इङ्गलैंड के 'डेली वर्कर' नामक साम्यवादी दैनिक ने २६ अप्रेल सन् १६४० के अङ्क में निम्न उत्तर दिया था:- "जो लोग यह कहते थे कि 'रूसी पूँजीपति के लिए लड़ो क्योंकि अन्यथा तुम जर्मन पूंजीपति के पैरों तले अा जानोगे, उनको