पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( १६१ ) राज्य में भी भेद करते हैं और इस आधार पर उन्होंने कहा कि फासिष्ट देशों के हमलों से प्रजातन्त्रीय राज्यों की रक्षा करना श्रावश्यक है । उन्होंने यह भी घोषणा की कि वह युद्ध जिसमें एक अोर सोवियत रूस के साथ प्रजातन्त्रीय पूँजीवादी दश हों और दूसरी ओर जर्मनी हो, सामाज्यवादी युद्ध नहीं होगा। यह मजेदार बात है कि देशभक्त सामाजिक जनतन्त्रियों द्वारा, जो पितृभूमि की रक्षा करने और राष्ट्रीय बुर्जुत्रों का साथ देने के पद में थे, पिछले विश्व युद्ध के समय में, ऐसे ही तर्क उपस्थित किये गये थे। शीडमैन और नौरक ने जारशाही बर्वरता के विरुद्ध प्रगतिशील जर्मनी का पक्ष लिया, और ग्वेसडे और वेलां ने निरंकुश जर्मन के विरुद्ध लोकतन्त्रीय फ्रांस का । उन्होंने यह भी युक्ति उपस्थित की कि हमारे ऊपर अाक्रमण किया गया है हम अपनी रक्षा करते हैं, श्रमिक वर्गों के हितों का तकाजा है कि वे यूरोपीय शान्ति की भंग करने वाले का प्रतिरोध करे । इन हेत्वाभासों की पोत लेनिन ने खूब खोली थी। उसने कहा था, "सभी सरकारों की घोषणा त्रों में और संसार-भर के बुर्जुश्रा लोगों की और पीले प्रेस की लम्बी चौड़ी बातों में यही राग अलापा गया है।" साम्यवादियों ने पहिले कहे अनुसार, फासिज्म के विरुद्ध बुर्जुश्रा जनतन्त्र का पक्ष लिया और फासिज्म के विरुद्ध जहाँ कहीं सम्भव हुअा, जनता का मोर्चा लगाने लगे। यदि फांस, संविधान-फ्रांस सोवियत रूस से मैत्री करने को तैयार होजाता, तो रूस इस युद्ध में प्रारम्भ से ही मित्रराष्ट्रों की ओर होता ओर उस अवस्था में संसार भर की साम्यवादी पार्टियों को निर्देश किया जाता कि वे मित्रराष्ट्रीय सरकारों की बिना शर्त सहायता करें । जब म्यूनिक बार्ता